रहस्यमयी किस्सा: एक बंद कमरे का अनसुलझा राज़

 

रहस्यमयी किस्सा: एक बंद कमरे का अनसुलझा राज़
raj

कुछ राज़ सिर्फ राज़ नहीं होते, वे हमारे रिश्तों की अनकही परतें होती हैं। यह कहानी है ऐसे ही एक रहस्यमयी किस्से की, जो एक परिवार के बंद कमरे में सालों से दफ्न था, और जब वह खुला, तो उसने रिश्तों के मायने ही बदल दिए।

यह कहानी है माथुर परिवार की।

श्री आलोक माथुर, एक रिटायर्ड जज, अपने सिद्धांतों और अनुशासन के लिए जाने जाते थे। उनके घर में एक कमरा था, जो हमेशा बंद रहता था - उनकी दिवंगत पत्नी, सुजाता, का कमरा। सुजाता की मृत्यु दस साल पहले हो चुकी थी, और उस दिन से, आलोक जी ने उस कमरे में किसी को जाने की इजाजत नहीं दी थी। वह खुद भी उस कमरे में कभी नहीं जाते थे।

यह एक पति का अपनी पत्नी के प्रति प्रेम था, या शायद कोई गहरा राज़, यह कोई नहीं जानता था।

इस कहानी के दो और महत्वपूर्ण किरदार हैं - उनका बेटा, रोहन, और उनकी बहू, प्रिया। रोहन अपने पिता का बहुत सम्मान करता था, पर उनके इस अजीब व्यवहार को कभी समझ नहीं पाया। उसे लगता था कि उसके पिता आज भी अपनी पत्नी के जाने के दुख से उबर नहीं पाए हैं।

प्रिया, जो एक समझदार और संवेदनशील महिला थी, को उस बंद कमरे में हमेशा एक अजीब सी बेचैनी महसूस होती थी। उसे लगता था कि उस कमरे में सिर्फ यादें नहीं, बल्कि कुछ अनसुलझे सवाल भी कैद हैं।

कहानी में मोड़ तब आया, जब घर की मरम्मत का काम शुरू हुआ। दीमक की वजह से, सुजाता जी के उस बंद कमरे की दीवार को तोड़ना ज़रूरी हो गया।

"नहीं! उस कमरे को कोई हाथ नहीं लगाएगा!" आलोक जी ने गुस्से में कहा, उनकी आवाज़ में एक अनजाना सा डर था।

"पर पापाजी," प्रिया ने बड़ी हिम्मत से कहा, "अगर दीवार नहीं तोड़ी, तो दीमक पूरे घर को खोखला कर देगी।"

बहुत बहस और मान-मनौव्वल के बाद, आलोक जी आखिरकार मान तो गए, पर एक शर्त पर - कि जब कमरे का ताला खुलेगा, तो वहाँ सिर्फ वह और रोहन ही मौजूद रहेंगे।

जिस दिन वह ताला खुला, उस दिन जैसे समय ठहर गया।

कमरा दस सालों से बंद था, पर वह धूल-भरा नहीं था। हर चीज़ करीने से सजी हुई थी, मानो कोई आज भी वहाँ रहता हो। बिस्तर पर एक सुंदर सी साड़ी रखी थी, ड्रेसिंग टेबल पर सुजाता जी का श्रृंगार का सामान था, और मेज पर एक अधूरी किताब रखी थी।

रोहन हैरान था। "पापा, यह सब... ऐसा लगता है जैसे माँ बस अभी कहीं बाहर गई हैं।"

आलोक जी की आँखें नम थीं।

तभी, रोहन की नज़र दीवार पर टँगी एक तस्वीर पर पड़ी। वह एक छोटे बच्चे की तस्वीर थी, जिसे रोहन ने पहले कभी नहीं देखा था।

"पाapa, यह कौन है?" उसने पूछा।

आलोक जी ने एक गहरी, कांपती हुई साँस ली। "यह तुम्हारा बड़ा भाई है, अनमोल।"

रोहन स्तब्ध रह गया। "मेरा... मेरा बड़ा भाई? पर मुझे तो कभी किसी ने नहीं बताया!"

उस दिन, उस बंद कमरे में, आलोक जी ने अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा और रहस्यमयी किस्सा खोला।

उन्होंने बताया कि रोहन के जन्म से पहले, उनका एक और बेटा था, अनमोल। वह बहुत बीमार रहता था। सुजाता ने उसकी सेवा में दिन-रात एक कर दिया था, पर वह उसे बचा नहीं पाई। पाँच साल की उम्र में, अनमोल की मृत्यु हो गई।

"तुम्हारी माँ," आलोक जी ने nghẹn ngat गले से कहा, "उस सदमे को कभी बर्दाश्त नहीं कर पाई। वह बाहर से तो मुस्कुराती रहती थी, पर अंदर ही अंदर हर रोज़ मर रही थी। वह घंटों इस कमरे में बंद रहती, अनमोल के खिलौनों से बातें करती। और फिर एक दिन... उसने भी हमारा साथ छोड़ दिया।"

उन्होंने बताया कि सुजाता की मृत्यु के बाद, उन्होंने इस कमरे को इसलिए बंद कर दिया, क्योंकि वह इस दर्द का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। यह उनकी कमजोरी का, उनके दुख का प्रतीक था। वह दुनिया के लिए एक मजबूत जज थे, पर अंदर से वह एक हारे हुए पति और पिता थे।

"मुझे माफ कर दे, बेटा," उन्होंने रोते हुए कहा। "मैंने यह बोझ अकेले ही उठाया, और इस चक्कर में, तुमसे भी दूर हो गया। मैंने तुम्हें कभी तुम्हारे भाई के बारे में नहीं बताया, क्योंकि मुझे डर था कि कहीं मैं तुम्हें भी न खो दूँ।"

यह एक पिता का त्याग था, जो अपने दूसरे बेटे को दर्द से बचाने के लिए अपने ही दर्द को छिपाता रहा।

रोहन की आँखों से भी आँसू बह रहे थे। आज उसे अपने पिता की कठोरता के पीछे छिपा हुआ दर्द, उनकी खामोशी के पीछे छिपी हुई तड़प समझ आई। सारी गलतफहमियाँ आज धुल गईं थीं।

उसने अपने पिता को कसकर गले से लगा लिया। "आप अकेले नहीं हैं, पापा। अब हम सब साथ हैं।"

उसी समय, प्रिया दरवाज़े पर खड़ी थी। उसने सब कुछ सुन लिया था। वह अंदर आई और अपने ससुर के हाथ थाम लिए। "पापाजी, आज यह कमरा खुला नहीं है, आज यह परिवार फिर से पूरा हुआ है।"

यह कहानी हमें सिखाती है कि कभी-कभी, जो चीज़ें हमें रहस्यमयी या अजीब लगती हैं, उनके पीछे गहरा दर्द और अनकही भावनाएँ छिपी होती हैं। एक बंद कमरा सिर्फ एक कमरा नहीं था, वह एक पिता का दुख, एक पति का प्यार और एक परिवार का अधूरा अतीत था।

उस दिन के बाद, वह कमरा हमेशा के लिए खुल गया। अब वहाँ अनमोल की तस्वीर के साथ, रोहन, प्रिया और उनके बच्चों की हँसती हुई तस्वीरें भी थीं। वह कमरा अब दुख का नहीं, बल्कि यादों, प्रेम और एक पूरे परिवार का प्रतीक बन चुका था।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ