खाली जेब वाला हीरो: एक पिता की अनकही अमीरी की कहानी

 

खाली जेब वाला हीरो: एक पिता की अनकही अमीरी की कहानी
Empty-Pocketed

हीरो की परिभाषा क्या होती है? क्या वह जो ऊँची इमारतों से छलांग लगाता है, या वह जिसके पास दुनिया की हर दौलत होती है? शायद नहीं। कभी-कभी, असली हीरो वह होता है, जिसकी जेब तो खाली होती है, पर जिसका दिल प्यार, ईमानदारी और आत्म-सम्मान के खजाने से भरा होता है। यह कहानी है ऐसे ही एक खाली जेब वाले हीरो, श्री रामभरोसे, की।

यह कहानी है उनकी बेटी, आँचल, की, जिसने अपने पिता की इस अनूठी अमीरी को दुनिया के सामने पहचाना।

रामभरोसे जी एक छोटे से शहर में एक सरकारी स्कूल के चपरासी थे। उनकी तनख्वाह इतनी कम थी कि महीने का खर्च चलाना भी एक संघर्ष था। उनका घर छोटा था, कपड़े पुराने थे, पर उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक और चेहरे पर एक गहरी ईमानदारी थी।

उनकी बेटी, आँचल, एक होनहार और समझदार लड़की थी। वह अपने पिता से बहुत प्यार करती थी, पर कभी-कभी, उसे अपने दोस्तों के अमीर पिताओं को देखकर एक टीस सी उठती थी। उसे लगता था कि काश उसके पिता भी उसे महंगे तोहफे दे पाते, उसे बड़ी गाड़ी में स्कूल छोड़ने जा पाते। यह एक बेटी का मासूम संघर्ष था, जो अपने पिता के प्यार और दुनिया की चकाचौंध के बीच फँसी हुई थी।

इस कहानी में एक और किरदार है, आँचल का दोस्त, साहिल। साहिल शहर के सबसे बड़े बिजनेसमैन का बेटा था। उसके पास हर वह चीज़ थी, जो आँचल सिर्फ सपनों में देख सकती थी।

स्कूल में 'फादर्स डे' का फंक्शन था। हर बच्चे को अपने पिता के बारे में कुछ पंक्तियाँ बोलनी थीं। साहिल ने बड़े गर्व से बताया कि कैसे उसके पिता ने उसे जन्मदिन पर एक महंगी गेमिंग कंसोल दिलाई थी। बाकी बच्चे भी अपने-अपने पिताओं की सफलताओं और महंगे तोहफों की कहानियाँ सुना रहे थे।

जब आँचल की बारी आई, तो वह झिझक रही थी। वह क्या बताती? कि उसके पिता उसे रोज़ सुबह अपने पुराने साइकिल पर बिठाकर स्कूल छोड़ते हैं? या यह कि वह अपनी तनख्वाह के पैसों से पहले उसके लिए किताबें लाते हैं, और अपने लिए फटी हुई चप्पल भी नहीं बदलते?

वह चुपचाप अपनी जगह पर जाकर बैठ गई। उस रात, उसने पहली बार अपने पिता से थोड़ी नाराज़गी से बात की।

"पापा, आप साहिल के पापा जैसे क्यों नहीं हैं?" उसने पूछा।

रामभरोसे जी, जो दिन भर की थकान के बाद अपनी आँखें बंद किए लेटे थे, ने आँखें खोलीं। उन्होंने कुछ नहीं कहा, बस अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेर दिया।

कहानी में मोड़ तब आया, जब स्कूल ने एक चैरिटी मेले का आयोजन किया। हर बच्चे को अपने घर से कुछ सामान लाकर बेचना था, और उससे जमा हुए पैसे एक अनाथालय को दान किए जाने थे।

साहिल और उसके दोस्त महंगे-महंगे खिलौने और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स लेकर आए। आँचल के पास बेचने के लिए कुछ भी कीमती नहीं था।

वह उदास बैठी थी, तभी उसके पिता, रामभरोसे जी, स्कूल आए। उनके हाथ में एक पुराना, धूल भरा बक्सा था।

"यह क्या है, पापा?" आँचल ने थोड़ा शर्मिंदगी से पूछा।

"यह मेरा खजाना है," उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।

उस बक्से में हाथ से बने लकड़ी के छोटे-छोटे, सुंदर खिलौने थे - एक नाचता हुआ मोर, एक सीटी बजाता हुआ सिपाही, और एक छोटी सी गुड़िया। यह वे खिलौने थे, जो रामभरोसे जी अपने खाली समय में बेकार लकड़ी के टुकड़ों से बनाते थे।

आँचल को लगा कि इन पुराने खिलौनों को कौन खरीदेगा।

पर जैसे ही रामभरोसे जी ने उन खिलौनों को अपनी मेज पर सजाया, एक चमत्कार हुआ।

बच्चों की भीड़ उन खिलौनों पर टूट पड़ी। उन हाथ से बने, अनोखे खिलौनों में एक अजीब सा आकर्षण था, एक सादगी थी, जो महंगे प्लास्टिक के खिलौनों में नहीं थी। देखते ही देखते, सारे खिलौने बिक गए। आँचल की स्टॉल पर सबसे ज़्यादा पैसे जमा हुए।

मेले के अंत में, जब प्रिंसिपल ने सबसे ज़्यादा योगदान के लिए आँचल और उसके पिता को मंच पर बुलाया, तो साहिल और उसके अमीर दोस्त हैरान थे।

"रामभरोसे जी," प्रिंसिपल ने कहा, "आज आपने हमें सिखा दिया कि सबसे कीमती चीज़ें अक्सर हाथ से बनाई जाती हैं, पैसे से नहीं।"

उस दिन, जब आँचल ने अपने पिता को मंच पर खड़े देखा, तो उसकी आँखों से गर्व के आँसू बह रहे थे। उसे आज समझ आया कि उसका पिता दुनिया का सबसे अमीर इंसान है।

उसकी अमीरी पैसों में नहीं, बल्कि उसके हुनर में, उसकी ईमानदारी में, और उसके उस दिल में थी, जो बेकार लकड़ी के टुकड़ों में भी जान फूँक सकता था।

घर लौटते समय, आँचल ने अपने पिता का हाथ कसकर पकड़ लिया।

"पापा," उसने कहा, "मुझे माफ कर दीजिए। मैं समझ ही नहीं पाई कि मेरे हीरो तो आप हैं।"

रामभरोसे जी की आँखों में एक गहरी, शांत मुस्कान थी। यह एक पिता की जीत की मुस्कान थी।

यह कहानी हमें सिखाती है कि हीरो होने के लिए जेब का भरा होना ज़रूरी नहीं है। एक खाली जेब वाला हीरो भी अपने बच्चों को वह दौलत दे सकता है, जो दुनिया का कोई भी अमीर आदमी नहीं दे सकता - आत्म-सम्मान, मेहनत और ईमानदारी की दौलत। और यही वह खजाना है, जो ज़िंदगी भर उनके साथ रहता है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ