सास का दिल: एक कठोरता के पीछे छिपी ममता की कहानी

 

सास का दिल: एक कठोरता के पीछे छिपी ममता की कहानी
sas ka dil

भारतीय समाज में 'सास' एक ऐसा शब्द है, जिसके साथ अक्सर कठोरता, नियम और एक अनकही दूरी का एहसास जुड़ जाता है। पर हर कठोरता के पीछे एक कहानी होती है, और हर दूरी के पीछे एक अनजाना सा डर। यह कहानी है ऐसी ही एक सास, श्रीमती निर्मला देवी, की। यह कहानी है उनके सास के दिल की, जो बाहर से तो नारियल जैसा सख्त था, पर अंदर से उतना ही नरम और ममता से भरा हुआ था।

यह कहानी है उनकी बहू, स्नेहा, की, जिसने उस कठोरता के पार झाँककर उस दिल में छिपे स्नेह को ढूँढ़ निकाला।

स्नेहा जब शादी करके उस घर में आई, तो उसका स्वागत हुआ एक शांत, पर अनुशासित माहौल से। उसकी सास, निर्मला जी, एक विधवा थीं और उन्होंने अकेले ही अपने बेटे, राहुल, को पाला था। वह कम बोलती थीं, पर उनकी आँखें हर चीज़ पर एक पैनी नज़र रखती थीं। उनके हर काम में एक परफेक्शन होता था, और वह अपनी बहू से भी वैसी ही उम्मीद रखती थीं।

"बहू, रोटियाँ गोल क्यों नहीं हैं?" या "घर में मेहमान आएँ, तो सिर पर पल्लू रखा करो।" - यह छोटी-छोटी टोक-टाक स्नेहा के लिए रोज़ की बात थी।

स्नेहा, जो एक आधुनिक और खुले विचारों वाले घर से आई थी, को यह सब बहुत चुभता। उसे लगता कि उसकी सास उसे कभी अपना ही नहीं पाएँगी। यह एक आम सास-बहू के रिश्ते की गलतफहमी थी।

राहुल, स्नेहा का पति, अपनी माँ और पत्नी के बीच एक पुल की तरह था। वह अपनी माँ के स्वभाव को जानता था और अपनी पत्नी की भावनाओं को भी समझता था।

"स्नेहा," वह अक्सर कहता, "माँ दिल की बुरी नहीं हैं। बस, वह अपनी भावनाओं को जताना नहीं जानतीं। तुम थोड़ा धैर्य रखो।"

पर स्नेहा का धैर्य अब जवाब दे रहा था। उसे उस घर में घुटन महसूस होने लगी थी।

कहानी में मोड़ तब आया, जब स्नेहा गर्भवती हुई।

यह खबर सुनते ही, निर्मला जी के व्यवहार में एक अजीब सा बदलाव आने लगा। उनकी कठोरता में अब एक अनकही परवाह घुल गई थी। वह अब स्नेहा को टोकती नहीं थीं, बल्कि उसका ध्यान रखती थीं। वह खुद उसके लिए सुबह बादाम का दूध बनाकर लातीं। उसे सीढ़ियाँ चढ़ने-उतरने से मना करतीं।

"बहू, अब तुम्हें दो लोगों का ख्याल रखना है," वह कहतीं, और उनकी आवाज़ में पहली बार एक नरमी होती थी।

स्नेहा यह बदलाव देखकर हैरान थी, पर उसे लगता था कि यह सब शायद वह अपने आने वाले पोते या पोती के लिए कर रही हैं।

डिलीवरी का दिन आया। कॉम्प्लीकेशन्स की वजह से, डॉक्टर ने कहा कि या तो माँ को बचाया जा सकता है, या बच्चे को।

जब डॉक्टर ने यह बात बाहर आकर राहुल और निर्मला जी को बताई, तो एक पल के लिए जैसे दुनिया रुक गई।

राहुल टूट गया। वह कोई फैसला नहीं ले पा रहा था।

तभी, निर्मला जी, वह कठोर और पारंपरिक महिला, आगे बढ़ीं। उन्होंने कांपते हाथों से डॉक्टर के हाथ जोड़े, और उनकी आवाज़ में एक माँ की वह तड़प थी, जो सदियों से अनसुनी थी।

"डॉक्टर साहब," उन्होंने nghẹn ngat गले से कहा, "मेरा बेटा... मेरा बेटा अपनी पत्नी के बिना नहीं जी पाएगा। आप मेरी बहू को बचा लीजिए। संतान तो भगवान फिर दे देगा, पर मेरे बेटे की दुनिया मत उजाड़िए।"

यह शब्द नहीं, एक सास का अपनी बहू के लिए सबसे बड़ा त्याग था। उस एक पल में, उन्होंने समाज की 'पहले वंश' वाली सोच को तोड़ दिया था।

राहुल ने अविश्वास से अपनी माँ की ओर देखा। आज उसे अपनी माँ के उस कठोर दिल के अंदर छिपी हुई ममता का सागर दिखाई दिया।

भगवान की कृपा से, डॉक्टर ने स्नेहा और बच्चे, दोनों को बचा लिया।

जब स्नेहा को होश आया, तो उसने देखा कि निर्मला जी उसकी नन्ही सी बेटी को अपनी गोद में लिए बैठी हैं, और उनकी आँखों से चुपचाप आँसू बह रहे हैं।

"माँजी..." स्नेहा ने धीरे से कहा।

निर्मला जी ने बच्ची को सुलाया और स्नेहा के पास आकर बैठ गईं। उन्होंने स्नेहा के सिर पर हाथ फेरा।

"मुझे माफ कर दे, बेटी," उन्होंने कहा। "मैं हमेशा तुझसे कठोर बनी रही। मैं डरती थी... मैं डरती थी कि कहीं मेरा बेटा मुझसे दूर न हो जाए। मैं अकेली थी, और मुझे लगा कि अगर तू सब कुछ मुझसे बेहतर करने लगेगी, तो इस घर में मेरी कोई ज़रूरत नहीं रहेगी।"

यह एक सास के दिल का वह अनकहा डर था, जिसे आज उसने अपनी बहू के सामने खोलकर रख दिया था।

स्नेहा की आँखों से भी आँसू बहने लगे। उसने अपनी सास का हाथ पकड़ लिया। "माँजी, आप इस घर की ज़रूरत नहीं, नींव हैं। और मैं तो बस एक दीवार हूँ, जो इस नींव के सहारे ही खड़ी रह सकती है।"

उस दिन, उस अस्पताल के कमरे में, दो औरतें एक-दूसरे को गले लगाकर रो रही थीं। एक सास और एक बहू नहीं, बल्कि एक माँ और एक बेटी।

यह कहानी हमें सिखाती है कि सास का दिल भी एक माँ का ही दिल होता है। वह कठोर ज़रूर दिख सकता है, पर उसके अंदर अपनी बहू के लिए प्यार, परवाह और एक अनजाना सा डर भी छिपा होता है। ज़रूरत है तो बस थोड़ी सी समझ, थोड़े से धैर्य और उस कठोर परत को हटाकर अंदर झाँकने की। क्योंकि जब एक बहू, अपनी सास के डर को समझकर उसे सम्मान देती है, तो वही सास उसकी सबसे बड़ी ताकत बन जाती है।

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