रिश्तों में दूरियाँ: एक छत के नीचे दो अजनबी

 

रिश्तों में दूरियाँ: एक छत के नीचे दो अजनबी 
riston ki dor

कुछ दूरियाँ किलोमीटरों में नापी जाती हैं, और कुछ... खामोशी में। यह कहानी है ऐसी ही रिश्तों में दूरियों की, जो एक ही घर में, एक ही छत के नीचे रहते हुए भी दिलों के बीच पनप गई थीं। यह कहानी है वर्मा परिवार की, और उस एक एहसास की, जिसने उन्हें याद दिलाया कि नज़दीक रहने का मतलब हमेशा पास होना नहीं होता।

वर्मा निवास, दिल्ली के एक मध्यमवर्गीय मोहल्ले का एक साधारण सा घर था। घर के मुखिया, श्री प्रकाश वर्मा, एक बैंक से रिटायर्ड थे। उनका जीवन अब अखबार, चाय और अपनी पुरानी यादों के इर्द-गिर्द घूमता था। उनकी पत्नी, सावित्री, एक शांत और ममतामयी महिला थीं, जिनकी दुनिया अब पूजा-पाठ और अपने बेटे-बहू के इंतज़ार में सिमट गई थी।

इस कहानी के दो और किरदार हैं - उनका बेटा, राहुल, और बहू, प्रिया। राहुल एक आईटी कंपनी में मैनेजर था और प्रिया एक स्कूल टीचर। दोनों महत्वाकांक्षी थे और अपने करियर में बहुत मेहनत कर रहे थे।

यह एक आम भारतीय परिवार का संघर्ष था, जहाँ एक पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़ी रहना चाहती थी, और दूसरी पीढ़ी भविष्य की उड़ान भरने में इतनी व्यस्त थी कि उसे पीछे मुड़कर देखने की फुर्सत ही नहीं थी।

राहुल और प्रिया सुबह जल्दी निकल जाते और देर रात थककर घर लौटते। वीकेंड दोस्तों और पार्टियों के नाम होता। वे अपने माता-पिता से प्यार करते थे, उनकी हर ज़रूरत का ध्यान रखते थे, पर उनके पास उनके लिए सबसे कीमती चीज़ नहीं थी - 'समय'।

"आज फिर देर हो गई," प्रकाश जी अपनी पत्नी से कहते, जब रात के ग्यारह बजे भी उनके बेटे-बहू घर नहीं लौटते।

"काम होगा," सावित्री जी एक ठंडी साँस भरकर कहतीं, पर उनकी आँखों का इंतज़ार सब कुछ कह जाता था।

यह रिश्तों में दूरियाँ अब घर के माहौल में एक अजीब सी उदासी घोलने लगी थीं। साथ बैठकर खाना खाए हुए महीने बीत गए थे। आँगन में बैठकर की जाने वाली बातें अब बस एक याद बनकर रह गई थीं।

कहानी में मोड़ तब आया, जब सावित्री जी की पुरानी, हाथ से लिखी हुई डायरी प्रिया के हाथ लगी। वह अलमारी साफ कर रही थी, जब उसे वह डायरी मिली। उसके पन्ने पीले पड़ चुके थे।

अनजाने में ही, प्रिया ने डायरी खोल ली। पहले पन्ने पर लिखा था - 'मेरे राहुल के लिए... मेरे दिल की बातें।'

जैसे-जैसे प्रिया पन्ने पलटती गई, उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उस डायरी में एक माँ ने अपने बेटे के बचपन की छोटी-छोटी यादें संजोकर रखी थीं।

"आज राहुल पहली बार 'माँ' बोला... लगा जैसे दुनिया की सबसे बड़ी दौलत मिल गई।"
"आज राहुल गिर गया, उसके घुटने पर चोट आई... पर दर्द मेरे दिल में हो रहा है।"

आखिरी पन्ने पर, कुछ ही महीने पहले की तारीख के साथ लिखा था -
"आज राहुल का जन्मदिन है। मैंने उसके लिए खीर बनाई। पर वह अपने दोस्तों के साथ बाहर पार्टी करने चला गया। खीर ठंडी हो गई... मेरा दिल भी।"

उस एक वाक्य ने प्रिया को अंदर तक झकझोर दिया। उसे एहसास हुआ कि जिस घर को वह सिर्फ एक होटल की तरह इस्तेमाल कर रही है, उस घर की दीवारों में कितनी अनकही भावनाएँ और कितना इंतज़ार कैद है। उसे अपनी और राहुल की बनाई हुई इन रिश्तों में दूरियों पर गहरा पश्चाताप हुआ।

उस रात, जब राहुल घर लौटा, तो प्रिया ने उसे वह डायरी दी।

"यह पढ़ो, राहुल," उसकी आवाज़ nghẹn ngat हो रही थी। "शायद तब तुम्हें समझ आए कि हम क्या खो रहे हैं।"

राहुल ने जब वह डायरी पढ़ी, तो उसका दिल अपराधबोध से भर गया। उसे याद आया कि कैसे बचपन में वह अपनी माँ के बिना एक पल भी नहीं रहता था, और आज वह उसी माँ के साथ एक ही घर में रहते हुए भी मीलों दूर है। यह एक बेटे का आत्म-बोध था।

अगली सुबह, राहुल और प्रिया ऑफिस नहीं गए।

उन्होंने अपनी माँ को किचन में जाने से रोक दिया। "आज नाश्ता हम बनाएँगे, माँ," राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा।

प्रकाश जी और सावित्री जी हैरान थे। सालों बाद, उनका बेटा-बहू उनके साथ नाश्ते की मेज पर बैठे थे।

"माँ," राहुल ने अपनी माँ का हाथ पकड़कर कहा, "मुझे माफ कर दीजिए। मैं अपनी दुनिया बनाने में इतना खो गया कि अपनी दुनिया बनाने वाली को ही भूल गया।"

सावित्री जी की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे।

उस दिन, उस घर में एक नई शुरुआत हुई। राहुल और प्रिया ने फैसला किया कि वे अपनी ज़िंदगी में एक संतुलन लाएँगे। उन्होंने अपने वीकेंड अब अपने परिवार के नाम कर दिए।

यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्तों में दूरियाँ तब नहीं बढ़तीं जब हम अलग-अलग शहरों में रहते हैं, बल्कि तब बढ़ती हैं जब हम एक ही घर में रहकर एक-दूसरे के दिल की आवाज़ सुनना बंद कर देते हैं।

कभी-कभी, हमें बस रुककर, अपने फोन को एक तरफ रखकर, अपने माँ-बाप के पास बैठने की ज़रूरत होती है। उनकी खामोशी को सुनने और उनकी आँखों में छिपे इंतज़ार को पढ़ने की ज़रूरत होती है। क्योंकि यही वह रिश्ता है, जो हमारी ज़िंदगी की सबसे बड़ी और सच्ची दौलत है।

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