दीवाली पर खोया प्यार: एक दीये की लौ में छिपी उम्मीद

 

दीवाली पर खोया प्यार: एक दीये की लौ में छिपी उम्मीद
diwali

दीवाली - रोशनी का त्योहार, खुशियों का उत्सव, और घर वापसी का एक अनकहा वादा। पर शर्मा परिवार के लिए, पिछले पाँच सालों से दीवाली एक खालीपन, एक कसक और एक खोए हुए प्यार की याद बनकर आती थी।

यह कहानी है श्री रामनाथ शर्मा, उनकी पत्नी सावित्री, और उनके इकलौते बेटे, रोहन, की।

पाँच साल पहले, दीवाली की ही रात थी। घर दीयों से जगमगा रहा था, आँगन में रंगोली सजी थी, और हवा में मिठाइयों की खुशबू थी। पर उस रात, एक छोटी सी बात पर बाप-बेटे में ऐसी बहस हुई कि घर की सारी रोशनी फीकी पड़ गई।

रोहन, जो एक प्रतिभाशाली संगीतकार बनना चाहता था, ने अपने पिता से मुंबई जाने की इजाजत माँगी थी। रामनाथ जी, एक रिटायर्ड सरकारी अफसर, चाहते थे कि उनका बेटा एक सुरक्षित नौकरी करे।

"यह गाना-बजाना कोई ज़िंदगी है?" उन्होंने गुस्से में कहा था। "हमारे खानदान में आज तक किसी ने यह काम नहीं किया।"

"पर पापा, यही मेरा सपना है," रोहन ने कहा।

"कोई सपना-वपना नहीं! अगर तुम्हें इस घर में रहना है, तो वही करना होगा जो मैं कहता हूँ," रामनाथ जी ने अपना आखिरी फैसला सुना दिया।

उस रात, एक गलतफहमी और दो पीढ़ियों के टकराव में, रोहन चुपचाप अपना गिटार उठाकर घर से चला गया। उसने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा।

उस दीवाली, शर्मा परिवार ने अपना प्यार खो दिया था।

अब पाँच साल बीत चुके थे। रामनाथ जी और सावित्री जी अब बूढ़े और अकेले थे। उनका बड़ा सा घर हर दीवाली पर सूना लगता था। सावित्री जी हर साल रोहन के पसंदीदा लड्डू बनातीं, इस उम्मीद में कि शायद इस बार उनका बेटा लौट आएगा। पर रामनाथ जी, अपने अहंकार और गुस्से के कारण, कभी अपने बेटे को फोन भी नहीं करते थे। वह बाहर से खुद को सख्त दिखाते, पर अंदर ही अंदर वह भी टूट चुके थे।

इस कहानी में एक और किरदार है, रोहन का बचपन का दोस्त, समीर। समीर ही वह एकमात्र जरिया था, जिससे उन्हें रोहन की थोड़ी-बहुत खबर मिलती रहती थी।

इस साल भी दीवाली आई। सावित्री जी ने हमेशा की तरह पूजा की थाली सजाई, लड्डू बनाए और दरवाज़े पर एक बड़ा सा दीया जलाया। "यह उम्मीद का दीया है," वह हर साल कहतीं।

शाम को, समीर उनके घर आया।

"नमस्ते, आंटी। अंकल कहाँ हैं?"

"अंदर ही होंगे, अपने कमरे में," सावित्री जी ने एक ठंडी साँस भरकर कहा। "उस रात के बाद, उन्होंने दीवाली मनानी ही छोड़ दी है।"

समीर, रामनाथ जी के कमरे में गया। वह चुपचाप खिड़की से बाहर देख रहे थे, उनकी आँखें सूनी थीं।

"अंकल," समीर ने धीरे से कहा। "रोहन... वह ठीक है। अब वह एक जाना-माना म्यूजिक कंपोजर बन गया है।"

रामनाथ जी ने कुछ नहीं कहा, पर समीर ने देखा कि उनके हाथ हल्के से कांप रहे थे।

"वह आज भी आपको बहुत याद करता है, अंकल," समीर ने कहा। "पर वह डरता है। उसे लगता है कि आप उसे कभी माफ नहीं करेंगे।"

"माफ?" रामनाथ जी की nghẹn ngat आवाज़ में कहा। "गलती तो मेरी थी। मैं ही एक अच्छा पिता नहीं बन पाया। मैं अपने अहंकार में इतना अंधा हो गया था कि अपने बेटे का सपना ही नहीं देख पाया।"

यह एक पिता का पश्चाताप था, जो पाँच सालों से उनके दिल में एक बोझ बना हुआ था।

उसी रात, जब पूरा शहर पटाखों और रोशनी में नहाया हुआ था, शर्मा जी के घर के दरवाज़े पर एक आहट हुई।

सावित्री जी ने दरवाज़ा खोला। सामने एक नौजवान खड़ा था, जिसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी और आँखों में एक अनजानी सी झिझक थी। वह रोहन था।

"माँ..." बस इतना ही कह पाया वह।

सावित्री जी ने रोते हुए अपने बेटे को गले से लगा लिया।

रामनाथ जी, जो आवाज़ सुनकर बाहर आए थे, अपनी जगह पर ही जड़ हो गए। पाँच साल... पाँच लंबे साल। उनका बेटा उनके सामने खड़ा था।

दोनों की आँखों में आँसू थे, पर कोई कुछ बोल नहीं पा रहा था। सालों के अहंकार और गलतफहमियों की दीवार आज भी उन दोनों के बीच खड़ी थी।

तभी, रोहन ने अपना गिटार निकाला। उसने अपनी आँखें बंद कीं, और एक धुन बजानी शुरू की। यह कोई फिल्मी धुन नहीं थी। यह एक भजन था, वही भजन जो उसके पिताजी हर सुबह पूजा में गाया करते थे।

उस धुन में सालों की जुदाई का दर्द था, घर की याद थी, और अपने पिता के लिए एक अनकहा सम्मान था।

जैसे-जैसे धुन आगे बढ़ी, रामनाथ जी के सब्र का बाँध टूट गया। वह आगे बढ़े और अपने बेटे को कसकर गले से लगा लिया। बाप-बेटे के आँसूओं ने सालों की दूरी को एक पल में मिटा दिया।

"मुझे माफ कर दे, बेटा," रामनाथ जी ने कहा।

"नहीं पापा, मुझे माफ कर दीजिए," रोहन ने कहा।

उस रात, उस घर में पाँच साल बाद सच में दीवाली मनी। सावित्री जी के 'उम्मीद के दीये' की लौ आज सबसे ज़्यादा चमक रही थी।

यह कहानी हमें सिखाती है कि प्यार और परिवार से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती। अहंकार और गलतफहमियाँ हमारे रिश्तों में अंधेरा तो कर सकती हैं, पर उन्हें हमेशा के लिए खत्म नहीं कर सकतीं। कभी-कभी, घर वापसी के लिए बस एक कदम की ज़रूरत होती है - माफी माँगने की, या माफ कर देने की।

उस दीवाली, शर्मा परिवार को अपना खोया हुआ प्यार वापस मिल गया था, और यही उनके लिए सबसे बड़ा तोहफा था।

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