मॉडर्न बहू: परंपरा और प्रगति के बीच एक नया रिश्ता

 

मॉडर्न बहू: परंपरा और प्रगति के बीच एक नया रिश्ता

'मॉडर्न बहू' - यह शब्द जब भी कानपुर के पुराने मोहल्ले में गूँजता, तो लोगों के मन में एक ही तस्वीर बनती - जीन्स पहनने वाली, देर तक सोने वाली और जिसे रसोई में सिर्फ मैगी बनाना आता हो। इसी सोच के साथ, जब रिटायर्ड बैंक मैनेजर श्री बृजमोहन जी के घर में उनकी पोती, मीरा, ब्याह कर आई, तो पूरे मोहल्ले की आँखें उसी पर टिक गईं।

यह कहानी है मीरा की, जिसे सबने मॉ-डर्न बहू का तमगा दे दिया था। यह कहानी है उसकी दादी-सास, सुमित्रा देवी की, जो अपनी परंपराओं को अपनी जान से ज़्यादा मानती थीं। और यह कहानी है उस परिवार की, जिसने सीखा कि 'मॉडर्न' होने का मतलब जड़ों से कटना नहीं, बल्कि उन्हें और भी मज़बूती से थामना होता है।

मीरा, दिल्ली में पली-बढ़ी एक आर्किटेक्ट थी। वह आत्मविश्वासी, स्वतंत्र और अपने विचारों को व्यक्त करने वाली लड़की थी। उसकी शादी बृजमोहन जी के पोते, आकाश से हुई थी, जो खुद भी एक प्रोग्रेसिव सोच वाला लड़का था।

जब मीरा पहली बार उस पुश्तैनी घर में आई, तो उसे लगा जैसे वह एक अलग ही दुनिया में आ गई है। घर की दीवारों पर पुरानी तस्वीरें, आँगन में तुलसी का चौरा और हवा में घी और पूजा की मिली-जुली महक।

सुमित्रा देवी, यानी आकाश की दादी, एक सख्त और अनुशासनप्रिय महिला थीं। उनके दिन की शुरुआत सुबह चार बजे गंगा स्नान से होती थी और उनकी दुनिया उनके पूजा घर और रसोई के इर्द-गिर्द घूमती थी।

शुरू में, दादी और मीरा के बीच एक अनकही सी दूरी थी। दादी को मीरा का लैपटॉप पर देर रात तक काम करना खटकता, और मीरा को दादी के कुछ पुराने रीति-रिवाज समझ नहीं आते।

"बहू, सिर पर पल्लू रखा करो," दादी अक्सर टोकतीं।

"दादीजी, ऑफिस की वीडियो कॉल पर पल्लू लेकर कैसे बैठूँ?" मीरा मुस्कुराकर जवाब देती।

यह छोटी-छोटी बातें थीं, पर वे सास-बहू के रिश्ते की एक आम गलतफहमी को दर्शाती थीं। आकाश हमेशा दोनों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता, पर वह भी अक्सर पिस जाता।

कहानी में मोड़ तब आया, जब घर की वर्षों पुरानी रसोई को नया बनाने की बात चली। रसोई छोटी, पुरानी और अव्यवस्थित थी, जिसमें धुआँ भरने के कारण दादी को अक्सर खाँसी उठती थी।

एक दिन, मीरा ने हिम्मत करके कहा, "दादीजी, अगर आप इजाज़त दें, तो क्या मैं इस रसोई को फिर से डिज़ाइन कर सकती हूँ? मैं इसे ऐसा बनाऊँगी कि आपको काम करने में आसानी हो और धुआँ भी बाहर निकल जाए।"

दादी ने अविश्वास से उसे देखा। "तू? तू क्या जाने रसोई के बारे में? यह आर्किटेक्चर का काम नहीं, घर चलाने का काम है।"

"एक मौका तो दीजिए, दादीजी," मीरा ने आग्रह किया।

बहुत सोचने के बाद, दादी मान गईं, पर एक शर्त पर। "ठीक है। पर एक बात याद रखना, मेरे मसाले के डिब्बे और पूजा के बर्तन अपनी जगह से नहीं हिलने चाहिए। वह मेरी माँ की निशानी हैं।"

अगले एक महीने तक, मीरा ने उस रसोई पर दिन-रात एक कर दिया। वह सिर्फ एक आर्किटेक्ट की तरह नहीं, बल्कि एक बहू की तरह काम कर रही थी। उसने दादी की हर छोटी-बड़ी ज़रूरत का ध्यान रखा।

उसने रसोई में एक बड़ी खिड़की बनवाई ताकि ताज़ी हवा और रोशनी आ सके। उसने मॉडर्न चिमनी लगवाई। उसने सेल्फ ऐसे डिज़ाइन किए कि दादी को बार-बार झुकना न पड़े। और सबसे महत्वपूर्ण बात, उसने दादी के पुराने, पीतल के मसाले के डिब्बों के लिए एक खास, सुंदर सी जगह बनाई, ठीक मंदिर की तरह।

जब नई रसोई बनकर तैयार हुई, तो सब हैरान रह गए। वह अब सिर्फ एक रसोई नहीं, बल्कि एक सुंदर, हवादार और आरामदायक जगह थी।

दादी जब पहली बार उस रसोई में गईं, तो उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं। सब कुछ नया था, पर कुछ भी अपरिचित नहीं लग रहा था। उन्होंने अपने मसाले के डिब्बों को उस सुंदर सी जगह पर सजे हुए देखा, तो उनकी आँखें भर आईं।

उस दिन, उन्होंने पहली बार मीरा को बहू नहीं, बेटी की नज़र से देखा।

शाम को, जब मीरा थकी-हारी अपने कमरे में आई, तो उसने देखा कि दादी उसके लिए अपने हाथों से बादाम का हलवा बनाकर लाई हैं।

"यह तेरे लिए," उन्होंने एक भीगी हुई आवाज़ में कहा। "आज तूने मुझे सिखा दिया कि 'मॉडर्न' होने का मतलब तोड़ना नहीं, बल्कि और खूबसूरती से जोड़ना होता है। तूने मेरी रसोई नहीं, मेरा दिल जीत लिया है, बेटी।"

मीरा ने दादी को कसकर गले से लगा लिया। उस दिन, उस रसोई की चिमनी से सिर्फ धुआँ ही बाहर नहीं निकला था, बल्कि सास-बहू के बीच की सारी गलतफहमियाँ भी उड़ गई थीं।

यह एक मॉडर्न बहू की कहानी थी, जिसने यह साबित कर दिया कि मॉडर्न होना कपड़ों या भाषा से नहीं, बल्कि सोच से होता है। वह सोच, जो परंपरा का सम्मान भी करे और उसे आज की ज़रूरतों के हिसाब से बेहतर भी बनाए।

उस दिन के बाद, सुमित्रा देवी गर्व से मोहल्ले की औरतों को अपनी नई रसोई दिखातीं और कहतीं, "यह मेरी मॉडर्न बहू ने बनाई है। मॉडर्न है, पर हमारे संस्कारों को इसने सोने की तरह चमका दिया है।"

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