विराटनगर का रहस्य: बारह मुखी शिवलिंग और एक टूटा हुआ परिवार

 

विराटनगर का रहस्य: बारह मुखी शिवलिंग और एक टूटा हुआ परिवार

पुरातत्ववेत्ता (Archaeologist) डॉ. विक्रम शर्मा के लिए, इतिहास सिर्फ पत्थरों और खंडहरों की कहानी नहीं था; यह उन इंसानों की अनकही भावनाओं का एक दस्तावेज था जो कभी उन पत्थरों के बीच रहते थे। उनका जुनून था भारत के अनसुने, रहस्यमयी स्थलों को खोजना। इसी जुनून ने उन्हें जयपुर के पास स्थित ऐतिहासिक विराटनगर की ओर खींचा, जहाँ के पंचखंड पर्वत पर स्थित भीम मंदिर में बारह मुखी शिवलिंग का उल्लेख मिलता था।

यह कहानी है डॉ. विक्रम की, उनके बेटे, आदित्य की, और उस शिवलिंग की, जिसने सिर्फ एक पुरातात्विक रहस्य ही नहीं, बल्कि एक टूटे हुए पारिवारिक रिश्ते को भी सुलझाया।

डॉ. विक्रम और उनके बेटे, आदित्य, के बीच एक गहरी खाई थी। आदित्य, जो एक सफल बिजनेसमैन था, अपने पिता के काम को समय की बर्बादी मानता था। उसे लगता था कि उसके पिता हमेशा धूल और पत्थरों में उलझे रहते हैं और उन्होंने कभी अपने परिवार को समय नहीं दिया।

"पापा, आप कब तक इन खंडहरों में भटकते रहेंगे?" आदित्य अक्सर कहता। "कभी तो हमारे साथ भी जी लीजिए। माँ को आपकी कितनी ज़रूरत थी, पर आप हमेशा अपनी खोज में ही लगे रहे।"

यह बात विक्रम जी के दिल में तीर की तरह चुभती थी। उनकी पत्नी, सरला, की मृत्यु कुछ साल पहले एक लंबी बीमारी के बाद हुई थी। विक्रम जी उस समय भी अपनी एक महत्वपूर्ण खोज के कारण उनके पास ज्यादा समय नहीं बिता पाए थे, जिसका अपराधबोध उन्हें आज भी अंदर ही अंदर खाता था।

इस बार, जब विक्रम जी ने विराटनगर के बारह मुखी शिवलिंग को खोजने का अपना अभियान शुरू किया, तो उन्होंने कुछ ऐसा किया जो उन्होंने पहले कभी नहीं किया था। उन्होंने अपने बेटे, आदित्य, को अपने साथ चलने के लिए कहा।

"आदित्य, मैं चाहता हूँ कि इस बार तुम मेरे साथ चलो," उन्होंने एक उम्मीद भरी, पर कांपती आवाज़ में कहा। "शायद तुम समझ सको कि मैं क्या ढूँढ़ता हूँ।"

आदित्य पहले तो मना करने वाला था, पर अपनी माँ की याद और पिता की आँखों में छिपी एक अनकही विनती देखकर वह इनकार नहीं कर पाया।

विराटनगर की यात्रा शुरू हुई। बाप-बेटे के बीच एक अजीब सी, भारी खामोशी थी।

पंचखंड पर्वत की चढ़ाई कठिन थी। पथरीले रास्ते, घनी झाड़ियाँ और ऊपर चढ़ता सूरज। आदित्य, जो आरामदायक जीवन का आदी था, जल्दी ही थक गया और चिढ़ने लगा।

"पापा, यह सब बेकार है! यहाँ कुछ नहीं मिलने वाला," वह हाँफते हुए बोला।

विक्रम जी ने कुछ नहीं कहा। वह बस चलते रहे, उनकी आँखें किसी पुराने नक्शे की तरह ज़मीन को पढ़ रही थीं। उन्होंने एक पुरानी, लगभग ढह चुकी गुफा के मुहाने पर रुककर कहा, "यही है भीम मंदिर। वह शिवलिंग यहीं कहीं होना चाहिए।"

गुफा के अंदर घना अँधेरा और सीलन थी। वर्षों की धूल और चमगादड़ों की गंध। आदित्य को यह सब असहनीय लग रहा था।

"यह मंदिर नहीं, एक खंडहर है," उसने निराश होकर कहा।

तभी, विक्रम जी की नज़र एक चट्टान पर पड़ी, जिस पर कुछ प्राचीन ब्राह्मी लिपि में लिखा हुआ था। उनकी आँखें चमक उठीं। उन्होंने उस लेख को पढ़ना शुरू किया।

"इसमें लिखा है," उन्होंने एक जोशीली आवाज़ में कहा, "कि यह बारह मुखी शिवलिंग कोई साधारण लिंगम नहीं है। यह बाहर नहीं, बल्कि साधक के मन के भीतर स्थापित होता है। इसके बारह मुख काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे बारह मानवीय विकारों के प्रतीक हैं। जो व्यक्ति इन बारह मुखों पर विजय पा लेता है, उसे ही आत्म-ज्ञान रूपी शिव के दर्शन होते हैं।"

आदित्य यह सब सुन रहा था, पर उसे यह सिर्फ़ एक दार्शनिक बात लगी।

तभी, विक्रम जी की नज़र गुफा के एक कोने में पड़ी, जहाँ पत्थरों का एक ढेर था। उन्हें लगा जैसे उसके नीचे कुछ दबा हुआ है। उन्होंने और आदित्य ने मिलकर पत्थर हटाने शुरू किए।

घंटों की मशक्कत के बाद, उन्हें नीचे एक छोटा सा, तहखाने जैसा कमरा मिला। उसके अंदर, बीचोबीच, सचमुच एक शिवलिंग था, पर वह बारह मुखी नहीं था। वह एक साधारण, काले पत्थर का शिवलिंग था।

आदित्य का सब्र टूट गया। "देखा! मैंने कहा था न, यहाँ कुछ नहीं है! आपकी सारी खोज, सारी मेहनत... सब बेकार! हमेशा की तरह!"

"नहीं, आदित्य!" विक्रम जी ने एक अलग ही आत्मविश्वास से कहा। "यह बेकार नहीं है। देखो।"

उन्होंने अपनी टॉर्च की रोशनी शिवलिंग के ठीक सामने वाली दीवार पर डाली। वहाँ, पत्थर पर कुछ उकेरा हुआ था। वह एक स्त्री का चेहरा था, जिसकी आँखों में एक शांत मुस्कान थी।

"यह... यह तो माँ का चेहरा है!" आदित्य ने हैरानी से कहा।

"हाँ," विक्रम जी की आवाज़ सौम्य हो गई। "तुम्हारी माँ को मैंने यहीं बनाया था, सालों पहले, जब हम पहली बार यहाँ आए थे। वह हमेशा कहती थीं कि असली तीर्थ हमारे अपने मन और हमारे रिश्तों में होता है।"

उन्होंने अपने बेटे का हाथ पकड़ा। "आदित्य, मैं हमेशा पत्थरों में इतिहास ढूँढ़ता रहा, और यह भूल ही गया कि मेरा सबसे कीमती इतिहास तो मेरे अपने घर में था - तुम और तुम्हारी माँ। मैं लोभ में था, प्रसिद्धि के लोभ में, और इस लोभ ने मुझे तुमसे दूर कर दिया। मैं क्रोध में था, जब तुम मुझे नहीं समझते थे। मैं मोह में था, इन बेजान पत्थरों के मोह में।"

उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे। "बेटा, वह बारह मुखी शिवलिंग बाहर नहीं है, वह मेरे ही अंदर है। और आज, तुम्हारे सामने अपनी गलतियों को मानकर, मैंने शायद उसके एक मुख पर विजय पाई है।"

आदित्य स्तब्ध खड़ा था। आज पहली बार, उसने अपने पिता को एक इतिहासकार के रूप में नहीं, बल्कि एक साधारण, कमजोर और पछतावे से भरे इंसान के रूप में देखा। उसे समझ आया कि उसके पिता की खोज सिर्फ पत्थरों की नहीं, बल्कि शायद खुद को माफ करने का एक तरीका थी।

उसने अपने पिता को कसकर गले से लगा लिया। बाप-बेटे के आँसुओं ने उस अँधेरी गुफा में सालों की गलतफहमियों को धो दिया।

उन्हें वह बारह मुखी शिवलिंग तो नहीं मिला, पर उन्होंने उससे भी कीमती कुछ पा लिया था - एक-दूसरे का खोया हुआ रिश्ता।

यह कहानी हमें सिखाती है कि सबसे बड़े धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल हमारे अपने परिवार और हमारे अपने मन के भीतर होते हैं। असली खोज पत्थरों की नहीं, बल्कि रिश्तों में छिपे प्रेम, क्षमा और समझ को खोजने की होती है। विराटनगर का वह रहस्यमयी शिवलिंग मिला हो या न मिला हो, पर उस दिन एक पिता और पुत्र को अपने-अपने शिव के दर्शन ज़रूर हो गए थे।

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