गुप्त विवाह की कहानी जिसने परिवार को हिलाकर रख दिया

गुप्त विवाह की कहानी जिसने परिवार को हिलाकर रख दिया

चौधरी परिवार की प्रतिष्ठा पूरे कस्बे में एक मिसाल थी। चौधरी भानु प्रताप, एक सख्त, अनुशासित और परंपरावादी व्यक्ति, अपने घर को एक किले की तरह चलाते थे, जहाँ उनकी मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था। उनका बड़ा बेटा, आदित्य, अपने पिता की परछाई था - आज्ञाकारी और जिम्मेदार। लेकिन छोटा बेटा, रोहन, एक शांत नदी की तरह था, जिसके गहरे पानी में कैसी हलचल है, कोई नहीं जानता था।

कहानी की शुरुआत एक साधारण सी सुबह से हुई, जब चौधरी साहब ने घोषणा की कि उन्होंने रोहन के लिए शहर के एक बड़े व्यापारी की बेटी से रिश्ता तय कर दिया है। घर में उत्सव की तैयारी शुरू हो गई, लेकिन रोहन का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।

उस रात, जब पूरा घर सो रहा था, रोहन ने एक ऐसा कदम उठाया जिसने उस परिवार की नींव हिला दी। उसने अपनी माँ, शारदा जी, के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। शारदा जी एक नरम दिल औरत थीं, जो हमेशा अपने पति के फैसलों और बच्चों की खुशियों के बीच पिसती रहती थीं।

"क्या बात है, बेटा?" उन्होंने चिंता से पूछा।

रोहन ने कांपते हुए अपने बैग से एक तस्वीर निकाली। उसमें वह एक लड़की के साथ खड़ा था, दोनों ने शादी के जोड़े पहने थे और उनके गले में मालाएँ थीं। लड़की की माँग में सिंदूर था।

"माँ, यह मेरी पत्नी है, प्रिया। हमने छह महीने पहले ही गुप्त विवाह कर लिया था।"

शारदा जी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। एक तरफ उनके पति का गुस्सा और घर की इज़्ज़त थी, और दूसरी तरफ उनके बेटे की ज़िंदगी। यह एक ऐसा गुप्त विवाह था जिसकी खबर परिवार को नहीं थी

"यह तूने क्या किया, रोहन?" उनकी आवाज़ में दर्द और डर दोनों था।

रोहन ने बताया कि प्रिया एक अनाथालय में पली-बढ़ी है। उसका कोई परिवार नहीं, कोई ऊँचा खानदान नहीं। वह जानता था कि पिताजी इस रिश्ते के लिए कभी नहीं मानेंगे। इसलिए, उन्होंने मंदिर में शादी कर ली और इस उम्मीद में जी रहे थे कि एक दिन वे सबको मना लेंगे।

यह राज़ माँ और बेटे के बीच एक बोझ बनकर रह गया। शारदा जी ने रोहन को कुछ दिन की मोहलत दी, लेकिन वह जानती थीं कि यह तूफ़ान ज़्यादा दिन तक शांत नहीं रहेगा।

और तूफ़ान आया।

एक हफ्ते बाद, रिश्ता तय करने वाले व्यापारी खुद चौधरी साहब के घर आ पहुँचे। उन्होंने गुस्से में कहा, "चौधरी साहब, आपका बेटा पहले से शादीशुदा है! यह बात आपने हमसे छिपाई? आपने हमारे साथ धोखा किया है!"

यह शब्द नहीं, एक बम था जो उस घर की शांति पर गिरा था। चौधरी भानु प्रताप का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उन्होंने रोहन को बुलाया। पहली बार, रोहन अपने पिता के सामने बिना झुके खड़ा था।

"हाँ, मैंने शादी की है," उसने दृढ़ता से स्वीकार किया। "और यह मेरा फैसला है।"

उस दिन उस घर में महाभारत छिड़ गई। चौधरी साहब ने रो-रोकर बेहाल अपनी पत्नी और गिड़गिड़ाते बड़े बेटे की एक न सुनी। उन्होंने अपना फैसला सुना दिया - "आज से इस लड़के के लिए मेरे घर के दरवाज़े हमेशा के लिए बंद हैं! इसने हमारी इज़्ज़त को मिट्टी में मिला दिया।"

रोहन ने चुपचाप अपना बैग उठाया और घर से निकल गया।

इस घटना ने परिवार को तोड़कर रख दिया। चौधरी साहब ने खुद को कमरे में बंद कर लिया। आदित्य अपने पिता और भाई के बीच बँट गया। लेकिन सबसे बड़ा बदलाव शारदा जी में आया।

सालों तक अपने पति की हर बात मानने वाली शारदा ने पहली बार आवाज़ उठाई। उस रात, उन्होंने अपने पति के बंद कमरे के बाहर से कहा, "आपने घर की मर्यादा बचा ली, पर घर को तोड़ दिया। आपने एक बेटे को खो दिया। इज़्ज़त दीवारों से नहीं, रिश्तों से बनती है।"

वक्त बीतता गया। घर में एक अजीब सी खामोशी रहने लगी। दिवाली आई, होली आई, पर कोई त्योहार नहीं मनाया गया। चौधरी साहब अंदर ही अंदर घुट रहे थे, पर उनका अभिमान उन्हें झुकने नहीं दे रहा था।

एक दिन, उन्हें दिल का दौरा पड़ा। अस्पताल में जब उनकी आँखें खुलीं, तो उन्होंने अपने सिरहाने एक अनजान लड़की को देखा, जो बड़ी लगन से उनकी सेवा कर रही थी। वह प्रिया थी। रोहन दरवाज़े के बाहर खड़ा था, क्योंकि उसे अंदर आने की इजाज़त नहीं थी।

प्रिया रोज़ आती। वह चौधरी साहब से बात करने की कोशिश नहीं करती, बस चुपचाप उनकी देखभाल करती। उसके सेवा भाव और शांत स्वभाव ने धीरे-धीरे चौधरी साहब के पत्थर दिल को पिघलाना शुरू कर दिया। उन्हें उसमें अपनी बेटी की छवि दिखने लगी।

एक शाम, जब कमरे में कोई नहीं था, चौधरी साहब ने कांपती आवाज़ में प्रिया से पूछा, "तुम यह सब क्यों कर रही हो? मैंने तुम्हारे साथ क्या किया, तुम जानती हो।"

प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा, "आप रोहन के पिता हैं, और मेरे लिए भी पिता समान हैं। पिता से कैसी नाराज़गी? परिवार को जोड़ने की यह मेरी छोटी सी कोशिश है।"

उस एक वाक्य ने चौधरी भानु प्रताप के सारे अभिमान को तोड़ दिया। उनकी आँखों से पश्चाताप के आँसू बहने लगे। उन्होंने दरवाज़े के बाहर खड़े रोहन को आवाज़ दी।

जब रोहन अंदर आया, तो सालों बाद एक पिता ने अपने बेटे को गले से लगा लिया। वह कोई साधारण मिलन नहीं था। वह टूटे हुए रिश्तों का, पिघले हुए अभिमान का और एक गुप्त विवाह की कहानी का अंत था, जिसने एक परिवार को हिलाकर रख तो दिया, पर अंत में उसे पहले से भी ज़्यादा मज़बूती से जोड़ भी दिया।

उस दिन चौधरी साहब ने सीखा कि परिवार की मर्यादा किसी के खानदान या दौलत से नहीं, बल्कि प्रेम, क्षमा और एक-दूसरे को अपनाने की क्षमता से बनती है।

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