चंद्रप्रभा

"आत्मशक्ति की चाँदनी"


 

गाँव के सबसे अंतिम छोर पर एक झोपड़ी थी, जहाँ चंद्रप्रभा अपने बूढ़े पिता के साथ रहती थी। उसका नाम चंद्रप्रभा था, पर उसकी किस्मत हमेशा अंधेरे में रही। माँ का साया बचपन में ही उठ गया, पिता बीमार और लाचार। पर चंद्रप्रभा ने कभी हार नहीं मानी।

वह सुबह खेतों में काम करती, दोपहर को गांव के बच्चों को पढ़ाती और शाम को अपने पिता के लिए आयुर्वेदिक औषधियाँ बनाती। लोग उसे देखकर कहते, "ये लड़की कोई साधारण नहीं है। इसमें कुछ खास है।"

एक दिन गांव में बाढ़ आ गई। नदी उफान पर थी। कई घर बह गए। लोग घबरा गए। उसी समय, चंद्रप्रभा ने गांव की औरतों और बच्चों को मंदिर की ऊँची पहाड़ी पर सुरक्षित पहुंचाया। खुद तैरकर वह एक-एक आदमी को बचाने लगी। उसका साहस देखकर गांव के मुखिया भी हैरान रह गए।

बाद में जब सरकार की मदद आई और रिपोर्ट बनी, तब चंद्रप्रभा को “ग्रामीण वीरता पुरस्कार” से नवाज़ा गया। लेकिन वह मुस्कुराकर बोली, “मैंने सिर्फ अपना कर्तव्य निभाया है। अगर हर बेटी आत्मशक्ति को पहचान ले, तो कोई भी संकट बेमानी है।”

अब चंद्रप्रभा सिर्फ एक लड़की नहीं थी, वह पूरे गांव की प्रेरणा बन चुकी थी। उसका नाम अब बच्चियों की किताबों में पढ़ाया जाने लगा।

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