चतुर खरगोश: बुद्धि और विवेक की एक पारिवारिक कहानी

 

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चतुर खरगोश: बुद्धि और विवेक की एक पारिवारिक कहानी

पंचतंत्र की कहानियाँ सिर्फ़ जानवरों की कहानियाँ नहीं हैं; वे मानवीय स्वभाव, रिश्तों और संघर्षों का एक गहरा आईना हैं। ऐसी ही एक कहानी है "चतुर खरगोश" की, जो हमें सिखाती है कि ताकत हमेशा शारीरिक बल में नहीं, बल्कि बुद्धि और विवेक में निहित होती है। चलिए, इस कहानी को एक आधुनिक, पारिवारिक परिप्रेक्ष्य में देखते हैं।

यह कहानी है सेठ धर्मदास के परिवार की।

सेठ धर्मदास, अपने शहर के सबसे अमीर और ताकतवर आदमी थे। उनका स्वभाव एक अहंकारी शेर की तरह था, जो मानता था कि पैसे और रुतबे से दुनिया की हर चीज़ खरीदी जा सकती है। उनका एक ही बेटा था, विशाल, जो बिल्कुल अपने पिता की परछाई था - घमंडी और अपनी ताकत के नशे में चूर।

इसी शहर के एक छोटे से मोहल्ले में रहता था हरि, एक साधारण स्कूल मास्टर। हरि का स्वभाव एक चतुर खरगोश की तरह था - शांत, विनम्र, पर बुद्धिमान और दूरदर्शी। उसकी सबसे बड़ी ताकत थी उसकी पत्नी, सुधा, जो हर मुश्किल में उसकी हिम्मत बनकर खड़ी रहती थी।

यह कहानी है ताकत और बुद्धि के टकराव की, और उस संघर्ष की, जिसमें एक साधारण इंसान ने अपनी चतुराई से एक शक्तिशाली दुश्मन को मात दी।

कहानी में मोड़ तब आया, जब सेठ धर्मदास ने हरि के पुश्तैनी घर पर अपनी नज़रें गड़ाईं। वह उस जगह पर एक बड़ा शॉपिंग मॉल बनाना चाहता था। हरि का घर उस प्रोजेक्ट के ठीक बीच में आ रहा था।

सेठ धर्मदास ने पहले हरि को मुँह माँगी कीमत की पेशकश की।

"मास्टर जी," उसने अपने अहंकार भरे लहजे में कहा, "यह खाली प्लॉट ले लीजिए और अपनी बाकी की ज़िंदगी आराम से गुजारिए। इस पुराने, टूटे-फूटे घर में क्या रखा है?"

हरि ने बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़कर मना कर दिया। "सेठ जी, यह सिर्फ़ एक घर नहीं, मेरे बाप-दादा की यादें हैं। मैं इसे नहीं बेच सकता।"

यह सुनकर सेठ धर्मदास का अहंकार जाग उठा। "तुम मेरी बात टालोगे? तुम जानते नहीं कि मैं कौन हूँ! मैं यह घर लेकर रहूँगा, चाहे तरीका कोई भी हो।"

उस दिन के बाद, सेठ धर्मदास ने हरि और उसके परिवार को परेशान करना शुरू कर दिया। उसने अपनी पहुँच का इस्तेमाल करके हरि की नौकरी छुड़वा दी। उसने गुंडे भेजकर उन्हें धमकाया। घर के बिजली-पानी का कनेक्शन कटवा दिया।

हरि का परिवार एक भयानक संघर्ष से गुज़र रहा था। घर में खाने के लाले पड़ गए। सुधा, जो हमेशा मजबूत बनी रहती थी, अब टूटने लगी थी।

"अब हम क्या करेंगे?" उसने एक रात रोते हुए पूछा। "हम इस शेर से कैसे लड़ेंगे?"

हरि ने अपनी पत्नी का हाथ थामा। उसकी आँखों में डर नहीं, एक अनोखी चमक थी। "सुधा, शेर जंगल का राजा ज़रूर होता है, पर वह अपनी ताकत के घमंड में अंधा हो जाता है। हमें शेर की तरह नहीं, खरगोश की तरह सोचना होगा।"

यह एक चतुर खरगोश की योजना की शुरुआत थी।

अगले दिन, हरि ने शहर के कुछ पत्रकारों को बुलाया, जो हमेशा बड़े लोगों के खिलाफ़ लिखने का मौका ढूँढ़ते थे। उसने उन्हें अपनी पूरी कहानी बताई - कैसे एक अमीर आदमी एक गरीब मास्टर के घर को हड़पने की कोशिश कर रहा है।

फिर, उसने एक और कदम उठाया। उसने शहर के उन सभी छोटे-छोटे दुकानदारों और निवासियों को इकट्ठा किया, जिनकी ज़मीनें सेठ धर्मदास ने पहले धोखे से या जबरदस्ती हड़प ली थीं।

"कब तक हम डरते रहेंगे?" हरि ने उन सब से कहा। "आज यह मेरे साथ हो रहा है, कल आपके साथ होगा। अगर हम सब एक हो जाएँ, तो कोई भी शेर हमारा शिकार नहीं कर पाएगा।"

हरि की बातों में एक सच्चाई और एक हिम्मत थी, जिसने सोए हुए लोगों को जगा दिया।

अगले दिन, जब सेठ धर्मदास का बेटा, विशाल, कुछ गुंडों के साथ हरि का घर खाली करवाने पहुँचा, तो उसने देखा कि घर के बाहर सिर्फ हरि नहीं, बल्कि सैकड़ों लोगों की भीड़ खड़ी है, जिनके हाथों में बैनर और पोस्टर थे। पत्रकार भी वहाँ मौजूद थे, अपने कैमरों के साथ।

विशाल घबरा गया। उसने कभी ऐसी एकता का सामना नहीं किया था।

तभी, हरि भीड़ से आगे आया। उसने विशाल से कहा, "सेठ जी से कहना, मास्टर जी ने आपको शहर के सबसे पुराने कुएँ पर बुलाया है... अकेले।"

यह एक अजीब सा निमंत्रण था, पर सेठ धर्मदास, अपनी ताकत के नशे में, यह देखने के लिए पहुँच गया कि आखिर यह 'खरगोश' क्या करना चाहता है।

पुराना कुआँ शहर के बाहर था। जब सेठ धर्मदास वहाँ पहुँचा, तो हरि अकेला खड़ा था।

"क्या तमाशा है यह?" सेठ ने दहाड़ते हुए पूछा।

हरि मुस्कुराया। "सेठ जी, इस कुएँ में एक बहुत बड़ा खजाना छिपा है। मेरे पुरखों ने बताया था। पर इसे निकालने के लिए एक शक्तिशाली इंसान की ज़रूरत है।"

पैसे के लालच में, सेठ की आँखें चमक उठीं। "कहाँ है खजाना?"

हरि उसे कुएँ के पास ले गया। "अंदर झाँककर देखिए, सेठ जी। आपको अपनी परछाई के साथ एक और परछाई दिखेगी, वही खजाने का रक्षक है।"

जैसे ही अहंकारी सेठ ने कुएँ में झाँका, उसे अपनी परछाई दिखी। "मुझे तो सिर्फ मैं ही दिख रहा हूँ!"

"थोड़ा और झुककर देखिए, सेठ जी," हरि ने कहा।

जैसे ही सेठ थोड़ा और झुका, उसे अपनी परछाई और भी साफ दिखने लगी, जो गुस्से में उसी की तरफ देख रही थी।

"हाँ, है तो कोई!" उसने लालच में कहा।

"यही है, सेठ जी," हरि ने कहा। "यही वह 'दूसरा शेर' है, जो आपके ही अहंकार की परछाई है और जो आपको एक दिन ले डूबेगा।"

तभी, झाड़ियों के पीछे से पुलिस और पत्रकार बाहर निकल आए, जिन्हें हरि ने पहले ही बुला रखा था। पुलिस ने सेठ धर्मदास को ब्लैकमेलिंग और जबरदस्ती ज़मीन हड़पने के पुराने मामलों में गिरफ्तार कर लिया।

यह कहानी हमें सिखाती है कि शारीरिक बल या धन की ताकत हमेशा नहीं जीतती। सच्ची ताकत बुद्धि, विवेक और एकता में होती है। एक चतुर खरगोश की तरह, हरि ने सीधे टकराव से बचकर, अपने दुश्मन की सबसे बड़ी कमजोरी - उसके अहंकार - पर ही वार किया।

उसने यह साबित कर दिया कि जब एक साधारण इंसान अपनी बुद्धि का सही इस्तेमाल करता है, तो वह सबसे शक्तिशाली अत्याचारी को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर सकता है।

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