प्यार और जिम्मेदारी: एक रिश्ते की अनकही कसौटी

 

प्यार और जिम्मेदारी: एक रिश्ते की अनकही कसौटी
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प्यार जब होता है, तो वह किसी आजाद पंछी की तरह आसमान में उड़ना चाहता है। पर जब उस पर जिम्मेदारी का बोझ आता है, तो वही प्यार एक कसौटी पर कसा जाता है। यह कहानी है ऐसे ही प्यार और जिम्मेदारी के बीच उलझे दो दिलों की, और उस एक एहसास की, जिसने उन्हें सिखाया कि सच्चा प्यार एक-दूसरे के लिए उड़ान भरना नहीं, बल्कि एक-दूसरे की ढाल बनकर ज़मीन पर टिके रहना है।

यह कहानी है प्रिया और समीर की।

प्रिया, दिल्ली की एक महत्वाकांक्षी पत्रकार थी, जिसकी आँखों में दुनिया को बदलने का सपना था। समीर, एक प्रतिभाशाली चित्रकार था, जिसके रंग कैनवास पर जादू करते थे। दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे और जल्द ही शादी करने वाले थे। उनकी दुनिया सपनों, कला और एक बेफिक्र भविष्य की उम्मीदों से सजी थी।

इस कहानी के एक और महत्वपूर्ण किरदार हैं, समीर के पिता, श्री अशोक जी। वह एक रिटायर्ड फौजी थे, सख्त अनुशासन वाले और अपनी जिम्मेदारियों को सर्वोपरि मानने वाले।

कहानी में भूचाल तब आया, जब शादी से ठीक एक महीने पहले, अशोक जी को एक गंभीर स्ट्रोक आया। वह लकवाग्रस्त हो गए और बिस्तर पर आ गए। घर की सारी जिम्मेदारियाँ अचानक समीर के कंधों पर आ गईं। उसके पिता का इलाज, घर का खर्च, और उनकी चौबीसों घंटे की देखभाल।

समीर का स्टूडियो अब एक शांत, उदास कमरे में बदल गया था। उसके रंग सूख रहे थे, और उसके सपने धूल खा रहे थे। यह एक बेटे की जिम्मेदारी का बोझ था, जो उसके कलाकार मन पर भारी पड़ रहा था।

"समीर," प्रिया अक्सर उसे समझाती, "तुम इस तरह अपनी कला को नहीं छोड़ सकते। हम कोई नर्स रख लेते हैं अंकल के लिए।"

"कैसे रख लें, प्रिया?" समीर की आवाज़ में एक बेबसी होती थी। "पापा को किसी और के सहारे नहीं छोड़ सकता मैं। और वैसे भी, अब इन सब के लिए पैसे कहाँ हैं?"

गलतफहमियाँ उनके रिश्ते में धीरे-धीरे जगह बनाने लगीं। प्रिया को लगता था कि समीर हार मान रहा है और अपने सपनों से दूर भाग रहा है। और समीर को लगता था कि प्रिया उसकी मजबूरियों को नहीं समझ रही।

"तुम नहीं समझोगी, प्रिया," वह एक दिन झुंझलाकर बोला। "तुम्हारे लिए करियर ही सब कुछ है। पर मेरे लिए, मेरे पिता के प्रति मेरा प्यार और जिम्मेदारी सबसे बढ़कर है।"

यह सुनकर प्रिया का दिल टूट गया। उसे लगा कि समीर के लिए अब उनके सपनों की कोई कीमत नहीं रही।

उस रात, प्रिया ने एक बड़ा फैसला किया।

अगली सुबह, जब समीर सोकर उठा, तो उसने देखा कि प्रिया अपना सामान पैक कर रही है।

"तुम... तुम मुझे छोड़कर जा रही हो?" समीर ने कांपती आवाज़ में पूछा।

"नहीं," प्रिया ने शांति से कहा, "मैं तुम्हें तुम्हारे सपनों के पास वापस ले जाने आ रही हूँ।"

उसने समीर का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ अपने पुराने कॉलेज के आर्ट स्टूडियो में ले गई, जिसे उसने किराए पर ले लिया था।

"यह क्या है?" समीर ने हैरानी से पूछा।

"यह तुम्हारा नया स्टूडियो है," प्रिया ने कहा। "तुम यहाँ हर रोज़ तीन घंटे आओगे और अपनी पेंटिंग पूरी करोगे। बाकी के समय हम मिलकर पापाजी की देखभाल करेंगे।"

उसने अपनी नौकरी के साथ-
-साथ, एक फ्रीलांस राइटर के तौर पर रात में काम करना शुरू कर दिया था, ताकि वह इस स्टूडियो का किराया दे सके। यह प्यार के लिए एक নিঃस्वार्थ त्याग था।

"पर प्रिया, यह सब..."

"समीर," प्रिया ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "मैंने तुमसे प्यार किया था, एक कलाकार से। मैं उस कलाकार को ऐसे मरते हुए नहीं देख सकती। प्यार और जिम्मेदारी दो अलग-अलग रास्ते नहीं हैं, वे एक ही सफर का हिस्सा हैं। हम मिलकर पापाजी की भी देखभाल करेंगे और तुम्हारे सपनों को भी ज़िंदा रखेंगे।"

उस दिन, समीर को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसे समझ आया कि प्रिया उसे कमजोर नहीं, बल्कि और भी मजबूत बना रही थी।

उसके बाद, उनकी ज़िंदगी बदल गई। वे दोनों एक टीम की तरह काम करते। दिन में, वे मिलकर अशोक जी की सेवा करते, उन्हें हँसाते, उनकी मालिश करते। और शाम को, प्रिया समीर को उसके स्टूडियो भेज देती।

अशोक जी, जो पहले चुपचाप और उदास लेटे रहते थे, अब अपने बेटे-बहू के इस निःस्वार्थ प्रेम को देखकर मुस्कुराने लगे थे। उन्होंने देखा कि कैसे उनकी बहू उनके बेटे के सपनों के लिए ढाल बनकर खड़ी है।

कुछ महीनों बाद, समीर ने अपनी पेंटिंग्स की एक प्रदर्शनी लगाई। प्रदर्शनी का शीर्षक था - "प्यार और जिम्मेदारी"।

उसकी हर पेंटिंग में एक कहानी थी - एक बेटे का संघर्ष, एक बहू का त्याग, और एक पिता का मूक आशीर्वाद।

प्रदर्शनी की सबसे मुख्य पेंटिंग में, एक नौजवान अपने लकवाग्रस्त पिता के पैर दबा रहा था, और उसकी पत्नी उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे हिम्मत दे रही थी, और उन दोनों की परछाई में एक खूबसूरत, रंगीन पंख उभर रहे थे।

वह प्रदर्शनी बहुत सफल रही।

यह कहानी हमें सिखाती है कि प्यार और जिम्मेदारी बोझ नहीं, बल्कि एक-दूसरे की ताकत होते हैं। सच्चा प्यार हमें जिम्मेदारियों से भागना नहीं, बल्कि उन्हें अपने सपनों के साथ लेकर चलना सिखाता है। जब दो लोग एक-दूसरे के सपनों को अपना मान लेते हैं, तो ज़िंदगी की कोई भी मुश्किल उन्हें हरा नहीं सकती।

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