माँ की सीख: जड़ों से जुड़ी रहने की अनमोल विरासत

 

माँ की सीख: जड़ों से जुड़ी रहने की अनमोल विरासत
Ma ki sikh

कुछ सीख किताबों में नहीं मिलतीं, वे ज़िंदगी के अनुभवों और अपनों के दिए हुए संस्कारों से मिलती हैं। यह कहानी है ऐसी ही एक माँ की सीख की, जो किसी क्लासरूम में नहीं, बल्कि घर की रसोई और आँगन में दी गई। यह कहानी है आकाश की, और उसकी माँ, श्रीमती देवकी, की उस अनमोल सीख की, जिसने उसे सफलता की ऊँचाइयों पर भी ज़मीन से जोड़े रखा।

आकाश, उत्तराखंड के एक छोटे से पहाड़ी गाँव का लड़का था। उसके पिता एक किसान थे और माँ, देवकी जी, एक साधारण गृहिणी। पर देवकी जी साधारण होकर भी असाधारण थीं। वह पढ़ी-लिखी नहीं थीं, पर उनके पास ज़िंदगी का वह ज्ञान था, जो बड़ी-बड़ी डिग्रियों में भी नहीं मिलता।

यह एक आम भारतीय परिवार की कहानी है, जहाँ सपने बड़े थे और साधन सीमित।

आकाश बचपन से ही पढ़ाई में बहुत तेज़ था। उसका सपना था एक बड़ा अफसर बनना और अपने परिवार को गरीबी से बाहर निकालना। देवकी जी अपने बेटे के इस सपने को पूरा करने के लिए हर त्याग करने को तैयार थीं।

वह हमेशा आकाश से तीन बातें कहती थीं, जो उसके लिए तीन जादुई मंत्र बन गईं:

  1. "बेटा, जड़ें जितनी गहरी होंगी, पेड़ उतना ही ऊँचा उठेगा।"

  2. "थाली में उतना ही लेना, जितना खा सको। अन्न का अपमान, भगवान का अपमान है।"

  3. "सच्ची पूजा किसी मंदिर में नहीं, लोगों की सेवा में होती है।"

आकाश ने दिन-रात एक करके पढ़ाई की और आखिरकार, वह एक आईएएस ऑफिसर बन गया। उसकी पहली पोस्टिंग दिल्ली में हुई।

शहर की चकाचौंध, बड़ी-बड़ी पार्टियाँ और ऊँचे लोगों के साथ उठना-बैठना... आकाश धीरे-धीरे इस नई दुनिया में रमने लगा। वह अपने गाँव, अपनी जड़ों को जैसे भूलता जा रहा था।

इस कहानी में एक और किरदार है, आकाश की पत्नी, नेहा। नेहा भी एक अच्छे परिवार से थी और उसे भी शहर की यह तेज रफ्तार ज़िंदगी बहुत पसंद थी।

कहानी में मोड़ तब आया, जब एक दिन आकाश के गाँव से उसके बचपन का दोस्त, चंदन, उससे मिलने दिल्ली आया। चंदन एक साधारण किसान था, उसके कपड़े मैले थे और उसके हाथ खुरदुरे थे।

जब वह आकाश के आलीशान बंगले पर पहुँचा, तो गेट पर खड़े गार्ड ने उसे रोक लिया।

उसी समय, आकाश अपनी बड़ी सी गाड़ी से वहाँ पहुँचा। उसने चंदन को देखा, पर अपने अमीर दोस्तों के सामने, उसे अपने गाँव के उस गरीब दोस्त को पहचानने में शर्मिंदगी महसूस हुई।

"कौन हो तुम? क्या काम है?" उसने एक रूखेपन से पूछा।

चंदन की आँखें भर आईं। "मैं... मैं चंदन हूँ, आकाश। तेरा बचपन का दोस्त।"

आकाश ने उसे नज़रअंदाज़ कर दिया। "मुझे कोई चंदन-वंदन याद नहीं। जाओ यहाँ से।"

यह एक गलतफहमी नहीं, बल्कि सफलता के नशे में अपनी जड़ों को भूल जाने का अहंकार था।

चंदन चुपचाप, सिर झुकाए वहाँ से चला गया।

उस रात, जब आकाश घर लौटा, तो उसकी माँ, देवकी जी, जो कुछ दिनों के लिए उसके पास रहने आई थीं, ने उससे कुछ नहीं कहा। वह बस चुपचाप बैठी रहीं।

अगले दिन, जब सब नाश्ते की मेज पर बैठे, तो देवकी जी ने अपनी थाली में सिर्फ एक रोटी ली।

"अरे माँ, आप इतना कम क्यों खा रही हैं?" नेहा ने पूछा।

देवकी जी ने अपने बेटे, आकाश, की ओर एक गहरी, भेदती हुई नज़र से देखा। "क्योंकि बेटा," उन्होंने कहा, "आजकल इस घर में अन्न का बहुत अपमान होता है। लोग अपनी थाली में उतना ले लेते हैं, जिसे वे पचा नहीं पाते... चाहे वह खाना हो, या सफलता।"

यह शब्द आकाश के दिल में तीर की तरह चुभ गए। यह उसकी माँ की दूसरी सीख थी, जो आज उसे आईना दिखा रही थी।

उसी शाम, देवकी जी ने अपना सामान बाँध लिया। "मैं वापस गाँव जा रही हूँ," उन्होंने कहा।

"पर क्यों, माँ?" आकाश ने पूछा।

"क्योंकि यहाँ मेरा दम घुटता है," उन्होंने कहा। "यहाँ बड़े-बड़े घर हैं, पर दिल बहुत छोटे हैं। यहाँ लोग पूजा तो करते हैं, पर इंसान की कद्र करना नहीं जानते। बेटा, सच्ची पूजा लोगों की सेवा में होती है, उनका अपमान करने में नहीं। तूने आज सिर्फ चंदन का नहीं, मेरे दिए हुए संस्कारों का भी अपमान किया है।"

यह कहकर वह चली गईं।

यह एक माँ का त्याग था, जो अपने बेटे को उसकी गलती का एहसास कराने के लिए, उसकी सफलता की चकाचौंध से दूर जा रही थीं।

माँ के जाने के बाद, वह बड़ा सा बंगला आकाश को काटने को दौड़ने लगा। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसे याद आया कि कैसे बचपन में चंदन उसी के साथ एक ही थाली में खाना खाता था। उसे अपनी माँ की हर बात, हर सीख याद आने लगी।

उसका अहंकार पिघलकर पश्चाताप के आँसुओं में बहने लगा।

अगले दिन, वह सब कुछ छोड़कर अपने गाँव के लिए निकल पड़ा।

जब वह अपने गाँव पहुँचा, तो उसने देखा कि चंदन के घर के बाहर भीड़ लगी है। पता चला कि चंदन की बेटी बहुत बीमार है और इलाज के लिए पैसों की ज़रूरत है।

आकाश दौड़कर चंदन के घर गया और उसके पैरों में गिर पड़ा। "मुझे माफ कर दे, दोस्त। मैं अंधा हो गया था।"

उसने न सिर्फ चंदन की बेटी के इलाज का सारा खर्चा उठाया, बल्कि उसने अपनी माँ से भी माफी माँगी।

यह कहानी हमें सिखाती है कि माँ की सीख सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि वह नींव होती है, जिस पर हमारे चरित्र का निर्माण होता है। सफलता पाना ज़रूरी है, पर उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है अपनी जड़ों से जुड़े रहना, अपनी इंसानियत को ज़िंदा रखना।

आकाश ने सीखा कि जड़ें जितनी गहरी होती हैं, पेड़ उतना ही ऊँचा उठता है। और उस दिन, उसने अपनी माँ के दिए हुए संस्कारों को फिर से पाकर, अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी सफलता हासिल की।

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