चतुर खरगोश और चालाक लोमड़ी: गाँव की सियासत और एक परिवार का संघर्ष

 

चतुर खरगोश और चालाक लोमड़ी: गाँव की सियासत और एक परिवार का संघर्ष
Village

चंदनपुर गाँव, जैसा कि नाम से ज़ाहिर था, अपनी चंदन की खुशबू के लिए नहीं, बल्कि अपनी सीधी-सादी जिंदगी और आपसी भाईचारे के लिए जाना जाता था। पर जब शहर से ज़मींदार भानु प्रताप सिंह का बेटा, विक्रम, गाँव लौटा, तो गाँव की हवा में सियासत और चालाकी का ज़हर घुलने लगा।

यह कहानी है एक चतुर खरगोश और एक चालाक लोमड़ी की, पर यह कहानी जंगल की नहीं, इंसानों की है।

हमारे कहानी का चतुर खरगोश है श्यामू, एक युवा, होनहार और ईमानदार किसान। श्यामू के पास ज़्यादा ज़मीन नहीं थी, पर अपनी मेहनत और नई-नई तकनीकों के ज्ञान से वह अपनी छोटी सी ज़मीन पर सोने जैसी फसल उगाता था। वह हमेशा गाँव वालों की मदद के लिए तैयार रहता था, और इसी वजह से सब उसे बहुत प्यार करते थे।

और हमारी कहानी की चालाक लोमड़ी है विक्रम, ज़मींदार का बेटा। वह शहर में पढ़कर आया था और उसकी नज़र गाँव की उपजाऊ ज़मीनों पर थी। वह जानता था कि सीधी तरह से कोई किसान अपनी ज़मीन नहीं बेचेगा, इसलिए उसने अपनी चालाकी का जाल बिछाना शुरू किया।

इस कहानी में दो और महत्वपूर्ण किरदार हैं - श्यामू की पत्नी, राधा, और उसका छोटा भाई, मोहन। राधा एक समझदार और साहसी महिला थी, जो हमेशा अपने पति की ताकत बनकर खड़ी रहती थी। वहीं मोहन, थोड़ा भोला और लालची था, जो विक्रम की शहरी चकाचौंध से बहुत प्रभावित था।

विक्रम ने सबसे पहले गाँव में अपनी पैठ बनानी शुरू की। वह गाँव के सरपंच को महंगे तोहफे देता, युवाओं को शराब और पैसों का लालच देता और खुद को गाँव का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने में लग गया।

उसकी नज़र श्यामू के खेत पर थी, जो नदी के किनारे था और सबसे ज़्यादा उपजाऊ था। उसने श्यामू को अपनी ज़मीन बेचने के लिए मुँह माँगी कीमत की पेशकश की।

"श्यामू," उसने बड़ी मीठी आवाज़ में कहा, "तुम इस छोटी सी ज़मीन पर मेहनत करके क्या कमा लेते हो? इसे मुझे बेच दो, और शहर जाकर एक बड़ा बिजनेस शुरू करो। मैं तुम्हारी मदद करूँगा।"

श्यामू ने बड़ी विनम्रता से मना कर दिया। "ठाकुर साहब, यह सिर्फ ज़मीन का टुकड़ा नहीं, यह मेरी माँ है। मैं इसे नहीं बेच सकता।"

जब विक्रम की सीधी उंगली से घी नहीं निकला, तो उसने उंगली टेढ़ी करने का फैसला किया। उसने अपनी चालाक लोमड़ी वाली बुद्धि का इस्तेमाल किया और श्यामू के छोटे भाई, मोहन, को अपना मोहरा बनाया।

उसने मोहन को शहर की बड़ी-बड़ी बातें बताईं, उसे महंगे कपड़े और एक मोटरसाइकिल खरीदकर दी। मोहन, जो हमेशा से अपने भाई की छाया में रहा था, विक्रम के इस अपनेपन के जाल में फँस गया।

"मोहन," विक्रम ने एक दिन कहा, "तुम्हारा भाई तो तुम्हें कुछ समझता ही नहीं। तुम इस गाँव में सड़ने के लिए पैदा नहीं हुए हो। तुम मेरे साथ शहर चलो, मैं तुम्हें हीरो बना दूँगा।"

एक गलतफहमी ने दो भाइयों के बीच दरार डाल दी। मोहन को लगने लगा कि उसका भाई उसकी तरक्की से जलता है।

एक रात, विक्रम ने अपनी आखिरी चाल चली। उसने मोहन को पटाया और उससे श्यामू के खेत के कागज़ात पर अंगूठा लगवा लिया, यह कहकर कि यह सरकारी लोन के कागज़ हैं।

अगली सुबह, जब विक्रम अपने आदमियों के साथ श्यामू के खेत पर कब्ज़ा करने पहुँचा, तो श्यामू के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।

"यह क्या कर रहे हैं, ठाकुर साहब?" श्यामू ने कहा।

"अब यह खेत मेरा है," विक्रम ने कागज़ात दिखाते हुए कहा। "तुम्हारे भाई ने इसे मुझे बेच दिया है।"

श्यामू ने जब अपने भाई मोहन की ओर देखा, तो मोहन ने शर्म से अपनी नज़रें झुका लीं। उसे अब अपनी गलती का एहसास हो रहा था।

श्यामू टूट गया। उसकी मेहनत, उसके सपने, सब कुछ एक पल में छिन गया था।

लेकिन तब, उसकी पत्नी राधा, जो अब तक चुप थी, आगे आई। वह एक साधारण गृहिणी से एक योद्धा बन गई

"ठाकुर साहब," उसने एक दृढ़ आवाज़ में कहा, "आपने मेरे पति के साथ धोखा किया है। पर हम हार नहीं मानेंगे।"

राधा ने गाँव की औरतों को इकट्ठा किया। उसने उन्हें समझाया कि आज जो श्यामू के साथ हुआ है, वह कल उनके साथ भी हो सकता है। श्यामू, जो हमेशा सबकी मदद करता था, आज उसे पूरे गाँव की ज़रूरत थी।

यह एक चतुर खरगोश की बुद्धिमानी थी, जो अब उसकी पत्नी के रूप में सामने आ रही थी।

अगले दिन, जब विक्रम फिर से अपने आदमियों के साथ खेत पर पहुँचा, तो उसने देखा कि खेत में श्यामू अकेला नहीं है। उसके साथ पूरे गाँव की औरतें और मर्द, हाथों में लाठियाँ और दरांती लिए खड़े हैं।

"यह खेत सिर्फ श्यामू का नहीं, यह पूरे गाँव का है!" राधा ने दहाड़ते हुए कहा। "अगर इसे हाथ लगाया, तो तुम्हें हम सबके ऊपर से गुज़रना होगा।"

विक्रम, जो हमेशा अपनी ताकत और पैसे के दम पर जीतता आया था, आज गाँव की इस एकता के सामने खुद को अकेला और कमजोर महसूस कर रहा था। उसकी चालाकी गाँव वालों के सीधे-सादे, पर मजबूत इरादों के सामने हार गई।

उसी समय, मोहन, जिसे अपनी गलती का गहरा पश्चाताप था, दौड़कर पुलिस को बुला लाया। उसने विक्रम के धोखे का सारा सच पुलिस के सामने उगल दिया।

यह कहानी हमें सिखाती है कि चालाकी और धोखे की उम्र बहुत छोटी होती है। वे कुछ समय के लिए जीतते हुए ज़रूर दिख सकते हैं, पर अंत में जीत हमेशा चतुराई, ईमानदारी और एकता की ही होती है।

श्यामू को उसका खेत वापस मिल गया। उसने अपने भाई मोहन को भी माफ कर दिया, क्योंकि वह जानता था कि परिवार गलतियों को माफ करके ही आगे बढ़ता है।

और चंदनपुर गाँव ने सीखा कि जब खरगोश एकजुट हो जाएँ, तो जंगल की कोई भी चालाक लोमड़ी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती।

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