गौरी के संघर्ष और सपने: एक परिवार की प्रेरणा
ज़िंदगी की किताब में, संघर्ष और सपने दो ऐसे अध्याय हैं जो हमेशा साथ-साथ चलते हैं। जब संघर्ष गहरा होता है, तो सपने और भी ज़्यादा चमकने लगते हैं। यह कहानी है ऐसे ही एक परिवार की, जिसने संघर्षों की आग में तपकर अपने सपनों को सोने की तरह निखारा। यह एक परिवार की प्रेरणा की कहानी है, जो हमें सिखाती है कि जब इरादे मजबूत हों और साथ अपनों का हो, तो कोई भी मुश्किल बड़ी नहीं होती।
यह कहानी है शंकर, उसकी पत्नी पार्वती, और उनकी बेटी, गौरी की।
मध्य प्रदेश के एक छोटे से गाँव में, शंकर एक कुम्हार था। उसके हाथ मिट्टी को ऐसे आकार देते थे, मानो वे कोई जादूगर हों। उसके बनाए हुए दीये, मटके और मूर्तियाँ पूरे इलाके में मशहूर थीं। पर मशीनों के इस दौर में, हाथ के इस हुनर की कद्र धीरे-धीरे कम हो रही थी। आमदनी इतनी कम थी कि दो वक्त की रोटी जुटाना भी एक संघर्ष बन गया था।
शंकर एक स्वाभिमानी इंसान था। वह अपनी कला को मरते हुए देख रहा था, और इस बेबसी में वह धीरे-धीरे निराशा और कड़वाहट से भरता जा रहा था।
उसकी पत्नी, पार्वती, एक शांत और धैर्यवान महिला थी। वह अपने पति के दर्द को समझती थी। वह जानती थी कि यह सिर्फ पैसों की तंगी नहीं, बल्कि एक कलाकार के आत्म-सम्मान की लड़ाई है।
उनकी बेटी, गौरी, जो अब कॉलेज में थी, अपने पिता के हुनर पर बहुत गर्व करती थी। पर वह उनकी निराशा को देखकर बहुत दुखी होती थी। गौरी के अपने सपने थे। वह अपने पिता की इस कला को दुनिया तक पहुँचाना चाहती थी।
एक दिन, जब शंकर हताश होकर अपने चाक के पास बैठा था, तो गौरी उसके पास आई।
"बापू," उसने बड़े उत्साह से कहा, "मैंने इंटरनेट पर देखा है। आजकल हाथ से बनी चीज़ों (handicrafts) की शहरों में बहुत माँग है। हम आपके बनाए हुए दीयों और मटकों को ऑनलाइन बेच सकते हैं।"
शंकर ने एक रूखी हँसी के साथ कहा, "पगली हो गई है क्या? यह इंटरनेट-विनटरनेट हमें क्या समझेगा? हमारी कला इन बड़े-बड़े शहरों के लिए नहीं है।" यह दो पीढ़ियों की सोच का टकराव था।
"पर बापू, एक बार कोशिश करने में क्या हर्ज़ है?" गौरी ने आग्रह किया।
उस रात, शंकर और गौरी के बीच बहुत बहस हुई। शंकर को यह अपनी कला का अपमान लग रहा था, और गौरी को यह अपनी कला को बचाने का एकमात्र रास्ता।
इस पारिवारिक संघर्ष में, पार्वती ने एक पुल का काम किया।
"सुनिए जी," उसने अपने पति से कहा, "हमारी बेटी कुछ गलत तो नहीं कह रही। ज़माना बदल रहा है, तो हमें भी थोड़ा बदलना होगा। क्या आप नहीं चाहते कि आपका हुनर सिर्फ इस गाँव तक ही सीमित न रहे?"
अपनी पत्नी की समझदारी और अपनी बेटी की ज़िद के आगे, शंकर आखिरकार मान तो गया, पर आधे-अधूरे मन से।
उस दिन से, उस छोटे से घर में एक नई क्रांति की शुरुआत हुई। गौरी ने अपने पुराने फोन से अपने पिता के काम की सुंदर-सुंदर तस्वीरें खींचीं और "बापू की कला" नाम से एक छोटा सा सोशल मीडिया पेज बनाया।
शुरू-शुरू में कुछ नहीं हुआ। कुछ लाइक और कमेंट्स के सिवा कोई ऑर्डर नहीं आया। शंकर का शक यकीन में बदलने लगा। "मैंने कहा था न, यह सब बेकार है।"
पर गौरी ने हार नहीं मानी। वह जानती थी कि यह एक लंबा संघर्ष है।
कहानी में मोड़ तब आया, जब दिवाली नज़दीक थी। गौरी ने अपने पिता से कुछ खास, डिज़ाइनर दीये बनाने को कहा। शंकर ने बेमन से कुछ दीये बनाए। गौरी ने उन दीयों को खूबसूरती से सजाया, उनकी तस्वीरें खींचीं और एक छोटी सी वीडियो बनाई, जिसमें शंकर मिट्टी को आकार देते हुए दिख रहे थे। उसने उस वीडियो के साथ एक कहानी लिखी - "इस दिवाली, एक कारीगर के घर भी रोशनी जलाइए।"
वह वीडियो, जिसमें एक पिता का हुनर और एक बेटी की उम्मीद थी, लोगों के दिलों को छू गया। वह रातों-रात वायरल हो गया।
अगली सुबह, गौरी का फोन लगातार बज रहा था। दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर... देश के कोने-कोने से दीयों के ऑर्डर आ रहे थे। ऑर्डर इतने थे कि उन्हें पूरा करने के लिए पूरे गाँव के कुम्हारों को साथ लगाना पड़ा।
शंकर हैरान था। उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। जिस इंटरनेट को वह कोसता था, आज उसी ने उसकी कला को एक नई ज़िंदगी दे दी थी।
दिवाली के दिन, जब उनका पूरा आँगन दीयों की रोशनी से जगमगा रहा था, और हर कुम्हार के चेहरे पर खुशी और संतोष था, तब शंकर अपनी बेटी, गौरी, के पास आया।
उसकी आँखों में आँसू थे, पर ये आँसू गर्व के थे।
"मुझे माफ कर दे, बेटी," उसने एक nghẹn ngat आवाज़ में कहा। "मैं तो अपनी कला को मरता हुआ देख रहा था, पर तूने तो उसे अमर बना दिया। तू मेरी बेटी नहीं, मेरा गुरु है।"
गौरी ने अपने पिता को गले से लगा लिया। "यह आपकी कला की जीत है, बापू। मैंने तो बस उसे दुनिया तक पहुँचाने का एक छोटा सा रास्ता बनाया है।"
यह कहानी हमें सिखाती है कि संघर्ष और सपने एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब परिवार एक साथ मिलकर संघर्ष करता है, तो बड़े से बड़े सपने भी हकीकत में बदल जाते हैं। गौरी की आधुनिक सोच और शंकर के पारंपरिक हुनर के संगम ने न सिर्फ उनके परिवार को बचाया, बल्कि एक पूरे गाँव को एक नई उम्मीद दी। यही एक परिवार की प्रेरणा है, जो हमें सिखाती है कि परंपरा और प्रगति दुश्मन नहीं, बल्कि एक-दूसरे के सबसे बड़े साथी हो सकते हैं।

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