पीपल का पेड़: जड़ों से जुड़ा एक परिवार
हर गाँव की अपनी एक आत्मा होती है, और चंदनपुर गाँव की आत्मा बसती थी उस विशाल, बूढ़े पीपल के पेड़ में, जो गाँव के ठीक बीचोबीच, पंचायत घर के सामने सदियों से खड़ा था। यह सिर्फ एक पेड़ नहीं था; यह गाँव का इतिहास था, गाँव का साक्षी था, और चौधरी परिवार के लिए, यह उनके पुरखों का आशीर्वाद था।
यह कहानी है उस पीपल के पेड़ की, और चौधरी परिवार की तीन पीढ़ियों की, जिनके रिश्ते उसी पेड़ की तरह समय के साथ उलझते और सुलझते रहे।
कहानी के केंद्र में हैं चौधरी हरदेव सिंह, एक 70 वर्षीय किसान, जिनकी ज़िंदगी उस पेड़ की जड़ों की तरह ही गाँव की मिट्टी से जुड़ी थी। उनके लिए वह पेड़ उनके पिता और दादा की निशानी था, एक जीवित देवता।
उनके दो बेटे थे। बड़ा बेटा, सूरज, बिल्कुल अपने पिता की परछाई था - शांत, मेहनती और अपनी ज़मीन से बेइंतहा प्यार करने वाला। छोटा बेटा, पवन, शहर की हवा में पला-बढ़ा था। वह महत्वाकांक्षी था और उसे गाँव की ज़िंदगी एक पिछड़ेपन का प्रतीक लगती थी।
यह दो भाइयों की सोच का टकराव था, एक जो जड़ों को सहेजना चाहता था, और दूसरा जो जड़ों को काटकर ऊँची उड़ान भरना चाहता था।
कहानी में मोड़ तब आया, जब गाँव से एक नया हाईवे निकलने का प्रस्ताव पास हुआ। हाईवे का नक्शा ठीक उस पीपल के पेड़ के बीच से होकर गुज़रता था। सरकार ने पेड़ को काटने और उसके बदले में चौधरी परिवार को एक मोटी मुआवज़े की रकम देने की घोषणा की।
पवन के लिए यह एक सुनहरा मौका था। "पिताजी," उसने बड़े उत्साह से कहा, "अब हमें इस गाँव में सड़ने की ज़रूरत नहीं। इन पैसों से हम शहर में एक बड़ा बिजनेस शुरू कर सकते हैं। यह पेड़ तो बस लकड़ी का एक टुकड़ा है।"
"चुप कर!" हरदेव सिंह दहाड़े, उनकी आँखों में गुस्सा और दर्द दोनों था। "यह पेड़ नहीं, हमारे बाप-दादा की आत्मा है। जब तक मैं ज़िंदा हूँ, इस पर कुल्हाड़ी नहीं चलने दूँगा।"
सूरज भी अपने पिता के साथ खड़ा था। "पवन, तू नहीं समझेगा। यह पेड़ हमें सिर्फ छाँव नहीं, बल्कि पहचान देता है।"
एक गलतफहमी ने परिवार को दो हिस्सों में बाँट दिया। पवन को लगा कि उसके पिता और भाई उसकी तरक्की के दुश्मन हैं। उसने घर छोड़ दिया और शहर जाकर अपने दोस्तों के साथ एक छोटा-मोटा काम शुरू कर दिया।
इधर, हरदेव सिंह और सूरज ने उस पेड़ को बचाने की मुहिम छेड़ दी। उन्होंने गाँव वालों को इकट्ठा किया, अफसरों से मिले, और पेड़ को 'विरासत वृक्ष' का दर्जा दिलाने के लिए अर्ज़ियाँ दीं। पर उनकी आवाज़ सरकारी फाइलों के ढेर में दबकर रह गई।
पेड़ कटने की तारीख नज़दीक आ रही थी। हरदेव सिंह टूट चुके थे। वह घंटों उस पेड़ के नीचे चुपचाप बैठे रहते, उसकी छाल को ऐसे सहलाते, जैसे वह अपने पिता का हाथ छू रहे हों।
पेड़ कटने से एक दिन पहले, गाँव में एक भयानक तूफ़ान आया। तेज़ हवा, मूसलाधार बारिश और बिजली की कड़कड़ाहट। गाँव के कई कच्चे घर उड़ गए, और पंचायत घर की छत भी ढह गई।
उसी रात, शहर में पवन जिस छोटी सी फैक्ट्री में काम करता था, उसकी छत भी तूफ़ान में उड़ गई। वह और उसके दोस्त बेघर हो गए। हताश और निराश, पवन के पास अपने गाँव लौटने के सिवा कोई चारा नहीं था।
जब वह आधी रात को भीगता हुआ अपने गाँव पहुँचा, तो उसने एक अद्भुत दृश्य देखा।
गाँव के सैकड़ों लोग - औरतें, बच्चे, बूढ़े - उस विशाल पीपल के पेड़ के नीचे जमा थे। पेड़, एक विशाल छतरी की तरह, उन सबको तूफ़ान से बचा रहा था। उसकी मोटी शाखाएँ और घने पत्ते हवा और बारिश के थपेड़ों को अपने ऊपर झेल रहे थे, पर अपने नीचे खड़े लोगों पर एक आँच भी नहीं आने दे रहे थे।
पवन ने देखा कि उसके पिता और भाई भी वहीं थे, और वे लोगों को संभाल रहे थे।
तभी, पेड़ की एक बड़ी सी, सूखी डाल टूटकर गिरने लगी, ठीक उसी जगह जहाँ कुछ बच्चे बैठे थे। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, सूरज दौड़कर आगे बढ़ा और बच्चों को एक तरफ धकेल दिया, पर वह डाल उसके कंधे पर आ गिरी।
"सूरज!" हरदेव सिंह चीखे।
पवन दौड़कर अपने भाई के पास पहुँचा। सूरज दर्द से कराह रहा था, पर उसके चेहरे पर एक संतोष था। "मैं ठीक हूँ, बाबूजी। बच्चे बच गए।"
उस एक पल में, पवन की आँखों से सारा शहरी अहंकार, सारा गुस्सा धुल गया। उसे आज समझ आया कि जिस पेड़ को वह 'लकड़ी का टुकड़ा' समझ रहा था, वह तो सचमुच में उनके गाँव का रक्षक है, उनका देवता है। और जिस भाई को वह अपना दुश्मन समझ रहा था, उसने अपनी जान पर खेलकर दूसरों की जान बचाई थी। यह त्याग की सच्ची परिभाषा थी।
अगली सुबह, जब सरकारी अहलकार और ठेकेदार पेड़ काटने के लिए आए, तो उन्होंने देखा कि उस पेड़ के चारों ओर पूरे गाँव ने एक मानवीय श्रृंखला बना रखी है। और उस श्रृंखला में सबसे आगे खड़े थे चौधरी हरदेव सिंह और उनके दोनों बेटे, सूरज और पवन, जिनके कंधे पर पट्टी बंधी थी।
"अगर इस पेड़ को काटना है," पवन ने एक नई, दृढ़ आवाज़ में कहा, "तो तुम्हें पहले हम सबके ऊपर से गुज़रना होगा।"
गाँव की इस एकता और एक बेटे के इस बदले हुए हृदय को देखकर, अफसरों को झुकना पड़ा। हाईवे का नक्शा बदल दिया गया।
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमारी जड़ें और हमारी परंपराएँ कभी हम पर बोझ नहीं होतीं। वे उस पीपल के पेड़ की तरह होती हैं, जो हमें हर तूफान में सहारा देती हैं। परिवार का आशीर्वाद और एकता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। पवन ने सीखा कि सच्ची तरक्की अपनी जड़ों को काटकर नहीं, बल्कि उन्हें और भी मजबूती से सींचकर होती है। और उस दिन, चौधरी परिवार की तीनों पीढ़ियाँ उस पीपल के पेड़ की छांव में एक हो गईं।
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