परिवार की छांव में प्रेम कहानी: एक रिश्ते की अनकही धूप-छाँव
भारतीय परिवारों में, प्रेम कहानियाँ अक्सर दो दिलों के बीच नहीं, बल्कि दो परिवारों की उम्मीदों, परंपराओं और मर्यादाओं के बीच पनपती हैं। यह कहानी है ऐसी ही एक प्रेम कहानी की, जो परिवार की छांव में पली, बढ़ी, और एक मुश्किल इम्तिहान से गुज़री।
यह कहानी है अदिति और समीर की।
अदिति, लखनऊ के एक पुराने, संस्कारी परिवार की बेटी थी। उसके पिता, श्री अवधेश जी, एक रिटायर्ड प्रोफेसर थे, जिनके लिए मान-सम्मान और परंपरा ही सब कुछ था। अदिति उनकी लाडली थी, पर साथ ही उनके सिद्धांतों के दायरे में बंधी हुई थी।
समीर, उन्हीं के पड़ोस में रहने वाले लाला जी का बेटा था। वह एक होनहार, मेहनती और थोड़ा शर्मीला लड़का था, जो अदिति को बचपन से ही मन ही मन चाहता था। उनकी प्रेम कहानी कभी खुलकर ज़ाहिर नहीं हुई। वह बस चोरी-छुपे एक-दूसरे को देखने, इशारों में मुस्कुराने और किताबों के आदान-प्रदान के बहाने मिलने तक ही सीमित थी।
इस कहानी की एक और महत्वपूर्ण पात्र है, अदिति की बड़ी बहन, राधिका। राधिका की शादी एक बड़े, अमीर घराने में हुई थी, पर वह अपनी शादी में खुश नहीं थी। उसका पति एक शराबी और हिंसक इंसान था। यह एक ऐसा सच था, जिसे अवधेश जी ने 'समाज में इज़्ज़त' के लिए सबसे छिपाकर रखा था।
कहानी में मोड़ तब आया, जब समीर ने हिम्मत करके अपने परिवार को अदिति से शादी करने की इच्छा के बारे में बताया। लाला जी खुशी-खुशी अवधेश जी के घर रिश्ता लेकर पहुँचे।
पर अवधेश जी ने साफ इनकार कर दिया।
"लाला जी," उन्होंने बड़ी कठोरता से कहा, "मैं मानता हूँ कि आपका बेटा एक अच्छा लड़का है। पर मैं अपनी बेटी की शादी एक साधारण, दुकान चलाने वाले परिवार में नहीं कर सकता। अदिति के लिए मैंने एक बड़ा, प्रतिष्ठित परिवार देखा है।"
यह शब्द अदिति और समीर के सपनों पर बिजली बनकर गिरे। समीर का परिवार मध्यमवर्गीय था, और यही बात अवधेश जी की शान के खिलाफ थी।
"पापा, आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?" अदिति ने रोते हुए पूछा। "आप मेरी खुशियों से ज़्यादा अपनी झूठी शान को महत्व दे रहे हैं।"
"शान झूठी नहीं है, अदिति," अवधेश जी ने कहा। "मैंने तुम्हारी बहन की शादी एक बड़े घर में करके गलती की, मैं मानता हूँ। पर इसका मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हें किसी छोटे घर में भेज दूँ। लोग क्या कहेंगे?"
उस दिन, परिवार की छांव, जो हमेशा अदिति को सुरक्षा देती थी, उसे एक पिंजरे की तरह लगने लगी।
समीर टूट गया, पर उसने हार नहीं मानी। उसने फैसला किया कि वह खुद को इतना काबिल बनाएगा कि अवधेश जी उसे मना न कर सकें। उसने दिन-रात मेहनत करके एक छोटी सी फैक्ट्री लगाई।
इधर, अदिति के लिए अवधेश जी ने एक बड़े अफसर का रिश्ता ढूँढ़ लिया। घर में शादी की तैयारियाँ शुरू हो गईं, पर अदिति एक ज़िंदा लाश बनकर रह गई थी।
शादी से कुछ दिन पहले, राधिका, अदिति की बड़ी बहन, घर आई। उसने अपनी छोटी बहन की सूनी आँखें और मुरझाया हुआ चेहरा देखा, तो उसका दिल कांप गया। वह जानती थी कि जिस दर्द से वह गुज़र रही है, वही दर्द अब उसकी बहन की किस्मत बनने जा रहा है।
उस रात, राधिका ने एक ऐसा कदम उठाया, जो कोई सोच भी नहीं सकता था।
उसने अपने पिता, अवधेश जी, के सामने अपने हाथ जोड़े। "पापा, मैं आज आपसे अपनी ज़िंदगी की भीख माँगने आई हूँ।"
उसने पहली बार, अपने पति के अत्याचारों, अपने आँसुओं और अपनी घुटन भरी ज़िंदगी का सारा सच अपने पिता के सामने खोलकर रख दिया।
"आपने मुझे एक बड़े घर में ब्याहा था, पापा," उसने सिसकते हुए कहा। "पर उस बड़ी हवेली की दीवारों ने मेरी हँसी को कैद कर लिया। आज मेरी बहन के साथ वही गलती मत कीजिए। परिवार की छांव का मतलब बड़ी दीवारें नहीं, बल्कि खुशियाँ और सम्मान होता है। समीर एक साधारण घर का लड़का ज़रूर है, पर वह अदिति को वह इज़्ज़त और खुशी देगा, जो मुझे कभी नहीं मिली।"
राधिका के शब्दों ने अवधेश जी को अंदर तक झकझोर कर रख दिया। उन्हें आज पहली बार अपनी बड़ी बेटी का दर्द दिखाई दिया। उन्हें एहसास हुआ कि वह अपनी झूठी शान और 'लोग क्या कहेंगे' के डर में, अपनी दोनों बेटियों की ज़िंदगी बर्बाद कर रहे थे।
उनकी आँखों से पश्चाताप के आँसू बहने लगे।
अगली सुबह, अवधेश जी खुद लाला जी के घर गए।
"लाला जी," उन्होंने हाथ जोड़कर कहा, "मैं अपनी बेटी, अदिति, का हाथ आपके बेटे, समीर, के हाथ में देना चाहता हूँ। मुझसे गलती हो गई। मैं समझ ही नहीं पाया कि असली अमीरी धन-दौलत में नहीं, बल्कि संस्कारों और एक अच्छे दिल में होती है।"
कुछ हफ्तों बाद, उसी घर में, अदिति और समीर की शादी हुई। यह सिर्फ दो प्रेमियों का मिलन नहीं था, यह दो परिवारों की सोच का मिलन था।
यह कहानी हमें सिखाती है कि परिवार की छांव एक पेड़ की तरह होती है। अगर उसे ज़िद और झूठी शान से सींचा जाए, तो वह अपने ही बच्चों को घुटन देने लगती है। पर अगर उसे प्यार, समझ और त्याग से सींचा जाए, तो वह हर तूफान में अपने बच्चों के लिए सबसे महफूज पनाहगाह बन जाती है।
अवधेश जी ने अपनी एक बेटी की खुशियों का त्याग करके जो गलती की थी, उसे उन्होंने दूसरी बेटी के सपनों को पूरा करके सुधारा। और इसी तरह, उस परिवार में प्रेम की एक नई कहानी ने जन्म लिया।
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