छोटी बहन की राखी: एक फौजी का अनकहा वादा
सीमा पर तैनात, फौजी विक्रम के लिए रक्षा बंधन का दिन हमेशा एक मीठी सी कसक लेकर आता था। उसे याद आती थी अपनी छोटी बहन, रिया, की। वह रिया ही थी, जिसने बचपन में पहली बार उसकी सूनी कलाई पर राखी बाँधी थी। उस दिन से, विक्रम ने मन ही मन एक वादा किया था - वह हमेशा अपनी बहन की रक्षा करेगा।
इस साल भी, रिया ने एक चिट्ठी के साथ राखी भेजी थी। चिट्ठी में लिखा था, "भाई, इस बार छुट्टी लेकर आ जाओ ना। आपके बिना राखी का त्योहार सूना लगता है। आपकी रिया।"
विक्रम ने वह चिट्ठी अपने दिल के पास रखी। उसका मन भी अपनी बहन के पास जाने को तड़प रहा था, पर देश की सीमा की रक्षा उसका पहला कर्तव्य था।
रक्षा बंधन के दिन, जब पूरा देश त्योहार मना रहा था, विक्रम और उसके साथी सैनिक अपनी पोस्ट पर मुस्तैदी से तैनात थे। माहौल में एक अजीब सी खामोशी थी। हर किसी के दिल में अपने घर, अपनी बहन की याद थी।
विक्रम ने अपनी जेब से रिया की भेजी हुई राखी निकाली। वह एक साधारण सी, रंग-बिरंगे धागों से बनी राखी थी, पर विक्रम के लिए वह दुनिया की सबसे कीमती चीज़ थी। उसने खुद ही उस राखी को अपनी कलाई पर बाँध लिया और आँखें बंद करके अपनी बहन को याद किया।
तभी, वायरलेस पर एक संदेश आया। खबर थी कि कुछ आतंकवादी सीमा पार करने की फिराक में हैं। अचानक, शांति का माहौल तनाव में बदल गया। गोलियों की आवाज़ गूँजने लगी।
विक्रम और उसके साथी अपनी-अपनी पोजीशन लेकर दुश्मनों का मुकाबला करने लगे। लड़ाई कई घंटों तक चली। इसी बीच, एक गोली विक्रम के साथी, अजय, के पैर में आ लगी। अजय दर्द से कराह उठा। वह एक खुली जगह पर फँस गया था और दुश्मन लगातार उस पर फायरिंग कर रहे थे।
एक पल के लिए विक्रम के मन में डर आया। लेकिन फिर उसकी नज़र अपनी कलाई पर बँधी छोटी बहन की राखी पर पड़ी। उसे अपना वह अनकहा वादा याद आया - रक्षा करने का वादा। उसने सोचा, "यह वर्दी भी तो मेरी एक बहन है, मेरा देश भी तो मेरी एक माँ है, और यह साथी भी तो मेरा भाई है। अगर मैं आज इसकी रक्षा नहीं कर पाया, तो अपनी बहन को क्या मुँह दिखाऊँगा?"
यह सोचकर, विक्रम ने अपनी जान की परवाह किए बिना, गोलियों की बौछार के बीच दौड़ लगा दी। उसने अजय को अपनी पीठ पर लादा और उसे सुरक्षित बंकर तक ले आया। लेकिन इस कोशिश में, एक गोली विक्रम के कंधे को छूकर निकल गई।
लड़ाई खत्म होने के बाद, जब सब शांत हुआ, तो अजय ने नम आँखों से विक्रम का हाथ पकड़ा और कहा, "आज तूने मुझे बचाकर मुझ पर सबसे बड़ा एहसान किया है, भाई।"
विक्रम ने मुस्कुराकर अपनी कलाई पर बँधी राखी को देखा और कहा, "एहसान कैसा? मैंने तो बस अपनी बहन को किया हुआ वादा निभाया है।"
उस रात, जब विक्रम ने मरहम-पट्टी के बाद अपने घर फोन किया, तो रिया ने रोते हुए पूछा, "भाई, आप ठीक तो हो ना?"
विकRAM ne apne dard ko chupate hue kaha, "Haan, gudiya, main bilkul theek hoon. Aur sun, maine aaj teri rakhi ki laaj rakh li."
Us din, hazaron meel door baithe do bhai-bahan ne Raksha Bandhan ka asli matlab samjha. Raksha ka matlab sirf behan ko tohfa dena ya uski suraksha karna nahi hai. Raksha ka matlab hai us vishwas ko zinda rakhna, us waade ko nibhana, jo ek bhai apni behen se karta hai.
Vikram ne apni chhoti behen ki rakhi ko chooma. Us ek dhage ne usey na sirf himmat di, balki usey yeh bhi ehsaas dilaya ki ek fauji ke liye har din Raksha Bandhan hota hai, jahan woh apne desh, apni vardi aur apne sathiyon ki raksha ka waada nibhata hai. Yeh ek aisi rakhi hai, jo dikhti nahi, par har fauji ke dil mein bandhi hoti hai.
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