क्या मिल सकता है एक सच्चा साथी गरीब और सुंदर लड़की को?
शिमला की धुंध भरी वादियों में, एक छोटे से गाँव में सिया रहती थी। सिया की सुंदरता की चर्चा पूरे इलाके में थी - झील सी गहरी आँखें, सेब जैसे लाल गाल और झरनों सी खिलखिलाती हँसी। लेकिन उसकी सुंदरता के साथ एक और सच्चाई जुड़ी थी - उसकी गरीबी। वह एक छोटे से ढाबे पर अपनी बीमार माँ के साथ काम करती थी, जहाँ वह चाय बनाती और बर्तन धोती थी।
सिया के लिए उसकी सुंदरता एक वरदान से ज़्यादा एक अभिशाप थी। अमीर घरों के लड़के उस पर फब्तियाँ कसते, और कुछ उसे महज़ एक खूबसूरत चीज़ समझते थे, जिसे हासिल किया जा सकता है। इन सब के बीच, सिया ने एक सपना देखना ही छोड़ दिया था। वह अक्सर खुद से पूछती, "क्या मिल सकता है एक सच्चा साथी गरीब और सुंदर लड़की को?" एक ऐसा साथी, जो उसकी आत्मा से प्यार करे, न कि सिर्फ़ उसकी सूरत से।
एक दिन, उस ढाबे पर एक नौजवान आया। उसका नाम आरव था। वह एक मशहूर लेखक था, जो शहर के शोर से दूर, अपनी नई किताब के लिए प्रेरणा खोजने शिमला आया था। उसने एक चाय का ऑर्डर दिया। जब सिया चाय लेकर आई, तो उनकी नज़रें मिलीं। आरव ने उसकी सुंदरता देखी, पर उससे ज़्यादा उसने उसकी आँखों में छिपी उदासी और उसके हाथों की मेहनत की कठोरता को महसूस किया।
आरव रोज़ उस ढाबे पर आने लगा। वह घंटों बैठा रहता, अपनी डायरी में कुछ लिखता और सिया को चुपचाप काम करते देखता। वह उससे बहुत कम बात करता था, पर उसकी आँखों में एक अजीब सा सम्मान और स्नेह था, जो सिया ने पहले कभी किसी की आँखों में नहीं देखा था।
एक शाम, जब ढाबा बंद होने वाला था, तो ज़ोर की बारिश शुरू हो गई। सिया और उसकी माँ अंदर फँस गए। आरव भी वहीं था। अचानक, सिया की माँ को खाँसी का तेज़ दौरा पड़ा। उनकी साँसें उखड़ने लगीं। सिया घबरा गई।
बिना एक पल सोचे, आरव ने अपनी गाड़ी निकाली और उन्हें अपनी गाड़ी में बिठाकर शहर के सबसे अच्छे अस्पताल की ओर भागा। उस रात, आरव पूरी रात अस्पताल में सिया के साथ रुका रहा। उसने न सिर्फ़ डॉक्टर का सारा खर्चा उठाया, बल्कि एक अजनबी होते हुए भी सिया का हाथ थामकर उसे हिम्मत दी।
जब सिया की माँ की हालत स्थिर हो गई, तो सिया ने झिझकते हुए आरव से कहा, "मैं आपके ये पैसे कैसे लौटाऊँगी?"
आरव ने मुस्कुराकर कहा, "तुम्हारी माँ की मुस्कान से बढ़कर कोई कीमत नहीं है। और वैसे भी, मैंने यह एक अजनबी के लिए नहीं किया है।"
यह रोमांटिक कहानी की एक खूबसूरत शुरुआत थी। उस रात के बाद, सिया और आरव के बीच की खामोशी टूटने लगी। आरव उसे अपनी कहानियों के बारे में बताता, और सिया उसे अपनी ज़िंदगी के छोटे-छोटे सपनों के बारे में। आरव ने उसे बताया कि वह अपनी कहानी की नायिका को बिलकुल सिया जैसा ही देखता है - सुंदर, मजबूत और स्वाभिमानी।
सिया को पहली बार महसूस हुआ कि कोई है जो उसकी बाहरी सुंदरता के पार देख रहा है। आरव को सिया की सादगी, उसकी मेहनत और उसकी सच्चाई से प्यार हो गया था। वह उसकी फटी हुई चप्पलें नहीं देखता था, वह उसके स्वाभिमान से भरे कदम देखता था।
लेकिन उनकी यह नज़दीकी गाँव के कुछ अमीर लड़कों को पसंद नहीं आई। उन्होंने आरव को ताना मारा, "शहर के बाबू, इस गरीब लड़की में क्या देख लिया? यह तो बस तुम्हारे पैसे के लिए तुम्हारे साथ है।"
एक दिन, उन्होंने सिया को घेर लिया और कहा, "वह लेखक चार दिन का मेहमान है। वह तुम्हें छोड़कर चला जाएगा। तुम जैसी लड़कियों की किस्मत में प्यार नहीं, सिर्फ समझौता लिखा होता है।"
यह सुनकर सिया का दिल टूट गया। उसके मन में फिर वही सवाल उठने लगा - क्या सच में एक अमीर लड़का एक गरीब लड़की से सच्चा प्यार कर सकता है?
उस शाम, जब आरव ढाबे पर आया, तो सिया ने उससे दूरी बना ली। आरव ने उसकी आँखों में वही पुरानी उदासी देखी। उसने पूछा, "क्या बात है, सिया?"
सिया ने कांपती आवाज़ में कहा, "आप शहर लौट जाइए। हम दोनों की दुनिया बहुत अलग है।"
आरव ने उसका हाथ पकड़ा और कहा, "सिया, मेरी दुनिया वह है जहाँ तुम हो। और मैं तुम्हें यह साबित करके दिखाऊँगा।"
अगले दिन, आरव अपनी महंगी गाड़ी और ब्रांडेड कपड़े छोड़कर, एक साधारण कुर्ता-पायजामा पहनकर ढाबे पर आया। उसने सिया की माँ से कहा, "माँजी, आज से मैं भी यहीं काम करूँगा, जब तक सिया को मुझ पर भरोसा नहीं हो जाता।"
यह देखकर सब हैरान रह गए। एक मशहूर लेखक, जिसके लाखों प्रशंसक थे, वह उस छोटे से ढाबे पर बर्तन माँजने लगा और ग्राहकों को चाय देने लगा। उसने यह सब किसी को दिखाने के लिए नहीं किया, बल्कि सिया को यह विश्वास दिलाने के लिए किया कि उसका प्यार किसी हैसियत का मोहताज नहीं है।
एक हफ्ते बाद, सिया ने आरव को बर्तन धोते हुए देखा। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। वह आरव के पास गई और बोली, "बस कीजिए। मुझे मेरा जवाब मिल गया।"
उस दिन सिया को अपने सवाल का जवाब मिल चुका था। एक सच्चा साथी मिल सकता है, चाहे लड़की गरीब हो या अमीर। उसे बस एक ऐसी नज़र चाहिए होती है जो उसकी आत्मा तक पहुँच सके।
आरव ने बर्तन धोना बंद किया और मुस्कुराकर सिया की ओर देखा। "तो क्या अब तुम्हें यकीन है कि मेरी कहानी की नायिका सिर्फ तुम हो?"
सिया ने शर्माते हुए हाँ में सिर हिला दिया।
जल्द ही, आरव ने अपनी किताब पूरी की, जिसका नाम था - "शिमला की चाय"। यह किताब एक बहुत बड़ी सफलता बनी। यह कहानी थी एक ऐसी लड़की की, जिसकी आत्मा उसकी सुंदरता से भी ज़्यादा खूबसूरत थी।
आरव ने सिया और उसकी माँ को अपने साथ मुंबई ले जाने का फैसला किया। सिया की माँ का इलाज अब बेहतर हो रहा था। सिया ने भी अपनी पढ़ाई फिर से शुरू की।
एक दिन, मुंबई के एक बड़े पुस्तक विमोचन समारोह पर, जहाँ देश के बड़े-बड़े लोग आए थे, आरव ने मंच से सबके सामने सिया का हाथ थामा और कहा, "ये हैं सिया, मेरी कहानी की प्रेरणा और मेरी ज़िंदगी की साथी। लोग कहते हैं कि गरीबी और अमीरी के बीच प्यार नहीं हो सकता, पर सच तो यह है कि प्यार दिलों के बीच होता है, दीवारों के बीच नहीं।"
उस दिन, सबने देखा कि एक गरीब और सुंदर लड़की को न सिर्फ़ एक सच्चा साथी मिल सकता है, बल्कि एक ऐसी दुनिया भी मिल सकती है जहाँ उसकी इज़्ज़त उसके कपड़ों से नहीं, उसके किरदार से की जाती है। सिया और आरव की प्रेम कहानी एक मिसाल बन गई, जो यह बताती थी कि सच्चा प्यार हर बंधन से ऊपर होता है।
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