रिश्तों की कड़ियाँ: जब बिछड़ना बुरा लगता है
माधुरी जी की दुनिया उनकी पोती, आठ साल की पीहू के इर्द-गिर्द घूमती थी। जब से उनके बेटे और बहू की नौकरी दूसरे शहर में लगी थी, पीहू उनके पास ही रहती थी। पीहू की सुबह दादी के हाथ के पराठों से होती थी और रात उनकी सुनाई कहानियों से खत्म होती थी। वे सिर्फ़ दादी-पोती नहीं थीं, वे एक-दूसरे की सबसे अच्छी सहेलियाँ थीं।
यह रिश्तों की एक ऐसी कड़ी थी जो उम्र के फासले से कहीं ज़्यादा मजबूत थी। माधुरी जी ने पीहू में अपना बचपन फिर से जिया था, और पीहू ने अपनी दादी में एक माँ, एक दोस्त और एक शरारतों की साथी को पाया था।
लेकिन हर कहानी में एक मोड़ आता है। एक दिन, उनके बेटे का फोन आया। उसकी आवाज़ में खुशी थी। "माँ, मेरा प्रमोशन हो गया है और अब कंपनी हमें फैमिली क्वार्टर दे रही है। हम पीहू को अपने साथ ले जाने आ रहे हैं।"
यह खबर सुनते ही माधुरी जी के हाथ से फोन छूटते-छूटते बचा। उनका दिल बैठ गया। वह जानती थीं कि यह दिन एक न एक दिन आना था। पीहू को अपने माता-पिता के साथ ही रहना चाहिए। पर यह जानते हुए भी, जब बिछड़ना बुरा लगता है, तो कोई तर्क काम नहीं आता।
अगले कुछ दिन घर में एक अजीब सी खामोशी छा गई। माधुरी जी पीहू का सामान पैक कर रही थीं, और हर कपड़े, हर खिलौने के साथ एक याद जुड़ी थी। यह उसका वो फ्रॉक था जिसे पहनकर वह पहली बार स्कूल गई थी, यह वो टेडी बियर था जिसे गले लगाए बिना उसे नींद नहीं आती थी।
पीहू भी इस बदलाव को महसूस कर रही थी। वह अपनी दादी से और भी ज़्यादा चिपक गई थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि जिस घर में वह पैदा हुई, उसे छोड़कर क्यों जाना पड़ रहा है।
जाने से एक रात पहले, पीहू अपनी दादी के पास आई और बोली, "दादी, क्या आप भी हमारे साथ चलोगी?"
माधुरी जी ने अपने आँसू छिपाते हुए कहा, "नहीं बेटा, यह तुम्हारा घर है और वह तुम्हारे मम्मी-पापा का। मुझे यहाँ रहकर तुम्हारे दादाजी की यादों का ध्यान भी तो रखना है।"
उस रात, माधुरी जी ने पीहू को उसकी पसंदीदा कहानी सुनाई - एक राजकुमारी और एक जादुई पेड़ की कहानी। कहानी खत्म होने पर पीहू ने पूछा, "दादी, क्या जादुई पेड़ राजकुमारी के बिना अकेला नहीं हो जाएगा?"
यह सवाल माधुरी जी के दिल में तीर की तरह चुभ गया।
अगले दिन, बेटे और बहू आ गए। घर में चहल-पहल थी, पर माधुरी जी का मन भारी था। जब जाने का समय आया, तो पीहू ने अपनी दादी को कसकर पकड़ लिया और रोने लगी। "मुझे नहीं जाना, दादी! मैं आपके बिना नहीं रहूँगी!"
यह दृश्य देखकर सबका दिल भर आया। माधुरी जी ने बड़ी मुश्किल से खुद को सँभाला। उन्होंने पीहू को अपनी गोद से उतारा और उसके हाथ में एक छोटा सा, मखमल का बटुआ थमा दिया।
"इसमें मैंने तुम्हारे लिए कुछ रखा है," उन्होंने कहा। "जब भी मेरी याद आए, तो इसे खोलकर देख लेना।"
गाड़ी चल पड़ी। माधुरी जी तब तक दरवाज़े पर खड़ी रहीं, जब तक गाड़ी आँखों से ओझल नहीं हो गई। फिर वे अंदर आईं और घर की खामोशी उन्हें काटने को दौड़ी। हर कोने में पीहू की हँसी गूँज रही थी। रिश्तों का यह बिछड़ना उन्हें अंदर तक तोड़ रहा था।
उधर, गाड़ी में पीहू चुपचाप बैठी थी। उसने धीरे से वह बटुआ खोला। उसके अंदर कोई कीमती चीज़ नहीं थी। उसमें एक सूखी हुई तुलसी की पत्ती, एक मोरपंख और एक छोटी सी, हाथ से लिखी पर्ची थी।
पर्ची पर लिखा था - "तुलसी तुम्हें निरोग रखेगी, मोरपंख तुम्हें खुशियाँ देगा, और मेरी याद... वह तो तुम्हारे दिल में हमेशा रहेगी। तुम्हारी दादी।"
उस छोटी सी पर्ची को पढ़कर पीहू की आँखों से आँसू बहने लगे, पर उसके चेहरे पर एक मुस्कान भी थी। उसे लगा जैसे दादी अब भी उसके पास ही हैं।
कुछ दिनों बाद, माधुरी जी का फोन बजा। दूसरी तरफ पीहू की चहकती हुई आवाज़ थी। "दादी! मैंने यहाँ एक तुलसी का पौधा लगाया है, बिल्कुल आपके आँगन जैसा! और मैंने अपनी ड्राइंग बुक में एक मोरपंख भी बनाया है!"
माधुरी जी मुस्कुराईं। उन्हें आज समझ आया कि रिश्तों की कड़ियाँ दूरियों से नहीं टूटतीं। वे यादों, प्यार और छोटी-छोटी चीजों से और भी मजबूत हो जाती हैं। पीहू उनसे शारीरिक रूप से दूर हो गई थी, पर भावनात्मक रूप से वह और भी करीब आ गई थी।
बिछड़ना आज भी बुरा लग रहा था, पर अब उस दर्द में एक मीठी सी उम्मीद भी थी - कि जब भी वे मिलेंगे, उनका प्यार पहले से भी ज़्यादा गहरा होगा। क्योंकि कुछ रिश्ते दूरी से खत्म नहीं होते, बल्कि और भी निखर जाते हैं।

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