विवाह की जिम्मेदारियां: एक अनकहा समझौता

 

विवाह की जिम्मेदारियां: एक अनकहा समझौता

आकाश और प्रिया का विवाह किसी फिल्मी कहानी जैसा नहीं था। यह एक अरेंज मैरिज थी, जो दो परिवारों की सहमति से हुई थी। आकाश एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, जिसकी दुनिया कोड और लॉजिक से चलती थी। प्रिया एक स्कूल टीचर थी, जिसे बच्चों की हँसी और कहानियों में सुकून मिलता था। दोनों की दुनिया अलग थी, पर दोनों ने एक नई दुनिया बसाने का सपना देखा था।

शादी के शुरुआती दिन गुलाब की पंखुड़ियों जैसे थे - नए, सुंदर और सुगंधित। लेकिन धीरे-धीरे, जब पंखुड़ियाँ मुरझाने लगीं, तो काँटे दिखने लगे। ये काँटे थे विवाह की जिम्मेदारियों के।

आकाश के लिए जिम्मेदारी का मतलब था - घर का किराया देना, बिल भरना और प्रिया की हर ज़रूरत पूरी करना। वह देर रात तक काम करता, ताकि वह एक अच्छा पति होने का फर्ज़ निभा सके।

प्रिया के लिए जिम्मेदारी का मतलब था - घर को सँभालना, समय पर खाना बनाना, और आकाश के माता-पिता का ध्यान रखना, जो दूसरे शहर में रहते थे, पर फोन पर रोज़ हाल-चाल लेना ज़रूरी था।

समस्या यह थी कि दोनों अपनी-अपनी जिम्मेदारियाँ तो निभा रहे थे, पर वे एक-दूसरे के साथ नहीं थे। उनकी बातचीत अक्सर इन वाक्यों पर खत्म हो जाती - "तुमने बिल भर दिया?" या "आज खाने में क्या है?"

शादी में पति-पत्नी की भूमिका बस एक चेकलिस्ट बनकर रह गई थी, जिसे दोनों हर दिन टिक कर रहे थे। प्यार था, पर वह जिम्मेदारियों की मोटी चादर के नीचे कहीं दब गया था।

एक दिन, प्रिया की तबीयत बहुत खराब हो गई। उसे तेज़ बुखार था। उस दिन आकाश की ऑफिस में एक बहुत ज़रूरी मीटिंग थी। उसने प्रिया को दवा दी, उसके माथे पर हाथ रखा और कहा, "अपना ध्यान रखना, मैं जल्दी आने की कोशिश करूँगा।"

यह कहकर वह चला गया। उसने अपनी जिम्मेदारी निभाई - एक कमाऊ पति की जिम्मेदारी।

प्रिया पूरे दिन बिस्तर पर अकेली पड़ी रही। उसे दवा से ज़्यादा किसी के साथ की ज़रूरत थी। उसे उस वक्त अपनी माँ की याद आई, जो बीमार होने पर उसके सिर पर हाथ फेरती रहती थीं। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।

शाम को जब आकाश लौटा, तो वह प्रिया के लिए सूप लेकर आया। उसने देखा कि प्रिया रो रही है।

"क्या हुआ? तबीयत ज़्यादा खराब है? डॉक्टर को बुलाऊँ?" आकाश ने चिंता से पूछा।

प्रिया ने रोते हुए कहा, "मुझे सूप नहीं, तुम्हारा वक्त चाहिए था, आकाश। मुझे तुम्हारी ज़रूरत थी।"

आकाश हैरान रह गया। "पर मैं ऑफिस में था, प्रिया। मीटिंग ज़रूरी थी। घर चलाना भी तो एक जिम्मेदारी है।"

उस रात, उन दोनों के बीच एक लंबी, खामोश लड़ाई हुई।

अगले दिन, आकाश जब ऑफिस के लिए तैयार हो रहा था, तो उसने देखा कि प्रिया चुपचाप उसका लंच बॉक्स पैक कर रही है, जबकि उसे अभी भी बुखार था। वह अपनी जिम्मेदारी निभा रही थी।

अचानक आकाश को कुछ महसूस हुआ। वह प्रिया के पास गया और उसका हाथ पकड़कर उसे रोका। "रहने दो, प्रिया। आज तुम आराम करो। मैं बाहर खा लूँगा।"

"नहीं, यह मेरी जिम्मेदारी है," प्रिया ने धीरे से कहा।

आकाश ने लंच बॉक्स एक तरफ रखा और प्रिया को अपने साथ बालकनी में ले आया। सुबह की ताज़ी हवा चल रही थी।

"प्रिया," आकाश ने बहुत नरमी से कहा, "हम दोनों गलत थे। मैं पैसे कमाने को अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी समझता रहा, और तुम घर सँभालने को। हम दोनों ने यह तो सोचा कि विवाह की जिम्मेदारियां क्या हैं, पर यह भूल गए कि हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी एक-दूसरे के प्रति है।"

उसने प्रिया का हाथ अपने हाथों में ले लिया। "हाँ, बिल भरना ज़रूरी है, और घर चलाना भी। पर उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है एक-दूसरे का हाथ थामना। आज तुम्हारी तबीयत खराब थी, और मुझे तुम्हारी देखभाल करनी चाहिए थी, मीटिंग से ज़्यादा तुम्हारी ज़रूरत को अहमियत देनी चाहिए थी। और जब मैं तनाव में होता हूँ, तो तुम्हें सिर्फ़ खाना नहीं, बल्कि मेरे साथ बैठकर मेरी बातें सुननी चाहिए।"

प्रिया की आँखों में आँसू थे, पर इस बार ये दुख के नहीं, समझ के थे।

उस दिन दोनों ने एक अनकहा समझौता किया। उन्होंने फैसला किया कि वे जिम्मेदारियों को बाँटेंगे नहीं, बल्कि साथ मिलकर निभाएंगे।

अब, जब आकाश देर रात तक काम करता, तो प्रिया उसके लिए कॉफी बनाकर उसके साथ बैठती, भले ही उसे नींद आ रही हो। और जब प्रिया थक जाती, तो आकाश बिना कहे किचन में जाकर चाय बना लेता। एक सफल विवाह का रहस्य उन्हें समझ आ गया था - यह जिम्मेदारियों की सूची बनाने में नहीं, बल्कि एक-दूसरे के अनकहे पलों में साथी बनने में है।

उनकी शादी आज भी किसी फिल्मी कहानी जैसी नहीं है। उसमें आज भी छोटी-मोटी नोक-झोंक होती है। पर अब उनके बीच एक गहरी समझ है। वे जानते हैं कि विवाह की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है - एक-दूसरे के अकेलेपन का साथी बनना और यह याद रखना कि वे पति-पत्नी बाद में हैं, पहले एक-दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त हैं।

 


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