ऑपरेशन सिंधु
भारतीय सेना के विशेष दस्ते "शेरगंज यूनिट" को एक गुप्त सूचना मिली थी कि LOC के पास एक आतंकवादी अड्डा, जिसका कोड नाम था "सिंधु बेस", सक्रिय है, और वहां से एक बड़ा हमला योजना में है।
इस ऑपरेशन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई कैप्टन आरव सिंह राठौड़ को— एक होशियार, तेजतर्रार और अत्यंत अनुशासित अफसर।
ऑपरेशन सिंधु को अंजाम देना आसान नहीं था। सिंधु बेस, ऊँचे पहाड़ों के बीच, बर्फीले तूफ़ानों और दुश्मन की निगरानी के बीच छिपा था।
रात 2:30 बजे:चारों जवान बर्फीले पहाड़ों को पार करते हुए, दुश्मन के इलाके में घुस चुके थे। हर कदम पर मौत का साया था।
लेफ्टिनेंट आयशा ने दुश्मन की रेडियो फ्रीक्वेंसी हैक कर ली— "हमले की तारीख 15 दिसंबर। जगह: श्रीनगर एयरबेस।"
समय कम था।कैप्टन आरव ने तय किया: "हमें सिंधु बेस को यहीं और अभी खत्म करना होगा।"
अर्जुन ने सटीक निशाना साधा, मोहित ने सुरंग में विस्फोटक लगाए। आयशा ने सिग्नल जाम किए। 30 मिनट के भीतर पूरा बेस ध्वस्त हो चुका था।
लेकिन जाते समय दुश्मन ने एक ग्रेनेड फेंका— मोहित घायल हो गया। आरव ने उसे पीठ पर लादकर 5 किलोमीटर नीचे उतरते हुए कैंप तक पहुँचाया।
ऑपरेशन सिंधु सफल रहा। आतंकियों की बड़ी साज़िश समय रहते नाकाम कर दी गई।
देश में चारों ओर सराहना हुई।लेकिन मोहित की जान नहीं बच पाई।
कैप्टन आरव ने सलामी देते हुए कहा:"हम जंग जीत गए, लेकिन अपने भाई को खो दिया। पर ये त्याग, हमारे वतन की मिट्टी की कीमत है।"

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