पत्नी की संघर्ष भरी दास्तान: एक गुमनाम योद्धा की कहानी
हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है - यह कहावत हम सबने सुनी है। पर हम अक्सर उस हाथ के संघर्ष, उसके त्याग और उसके अनकहे आँसुओं को अनदेखा कर देते हैं। यह कहानी है ऐसी ही एक स्त्री की, एक पत्नी की संघर्ष भरी दास्तान की, जिसने अपने पति के सपनों को सींचने के लिए अपनी हर ख्वाहिश को खामोशी से दफ्न कर दिया।
यह कहानी है सुमन और रवि की।
सुमन, इलाहाबाद के एक छोटे से मोहल्ले की, बड़ी-बड़ी आँखों में छोटे-छोटे सपने लिए एक साधारण सी लड़की थी। उसकी शादी रवि से हुई, जो एक होनहार पर गरीब लड़का था। रवि का एक ही सपना था - एक बड़ा लेखक बनना। उसकी कलम में जादू था, पर उसकी जेब खाली थी।
"सुमन," रवि अक्सर कहता, "देखना, एक दिन मेरी किताबें दुनिया पढ़ेगी। हमारे पास सब कुछ होगा - बड़ा घर, गाड़ी, और हमें कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होगी।"
सुमन उसकी आँखों में अपने लिए एक उज्ज्वल भविष्य देखती और मुस्कुरा देती।
शादी के बाद, वे दोनों मुंबई की एक छोटी सी चॉल में रहने लगे। रवि दिन भर अपनी कहानियों में खोया रहता और रात भर जागकर लिखता। घर का सारा बोझ सुमन के कंधों पर था। उसने एक कपड़े की फैक्ट्री में सिलाई का काम शुरू कर दिया।
यह एक पत्नी के संघर्ष की शुरुआत थी, जो दुनिया की नज़रों से छिपी हुई थी।
सुमन सुबह पाँच बजे उठती, घर का सारा काम करती, रवि के लिए खाना बनाती और फिर फैक्ट्री के लिए निकल जाती। वह आठ घंटे मशीनों के बीच खटती, और शाम को लौटकर फिर से घर के कामों में जुट जाती। उसकी ऊँगलियों में सुई के चुभने के निशान थे, और उसकी आँखों में नींद की कमी की थकान, पर उसके चेहरे पर कभी कोई शिकायत नहीं होती थी।
वह अपनी छोटी सी तनख्वाह से घर चलाती और उसमें से थोड़े पैसे बचाकर रवि के लिए नई किताबें और कलम भी ले आती।
"इसकी क्या ज़रूरत थी, सुमन?" रवि झिझकते हुए कहता।
"एक लेखक के लिए उसके हथियार से बढ़कर कुछ नहीं होता," वह मुस्कुराकर जवाब देती।
इस कहानी में एक और किरदार है, उनकी पड़ोसन, फातिमा बी। फातिमा बी एक अनुभवी और समझदार महिला थीं। वह सुमन के इस मूक संघर्ष को देखती थीं और उनका दिल पसीजता था।
"बेटी," वह अक्सर सुमन से कहतीं, "मर्द जात सपनों के पीछे भागती है, पर औरत को हकीकत की ज़मीन पर चलना पड़ता है। अपना भी थोड़ा ख्याल रखा कर।"
सुमन बस मुस्कुरा देती।
समय बीतता गया। रवि की कई पांडुलिपियाँ प्रकाशकों (publishers) ने लौटा दीं। हर असफलता के साथ, रवि और भी ज़्यादा निराशा में डूब जाता। वह चिड़चिड़ा हो गया था और अक्सर अपनी सारी भड़ास सुमन पर निकाल देता।
"तुम क्या समझोगी एक लेखक का दर्द!" वह एक दिन गुस्से में चिल्लाया। "तुम तो बस सिलाई मशीन चलाना जानती हो।"
यह शब्द सुमन के दिल में कटार की तरह चुभ गए। जिस इंसान के सपनों के लिए वह अपना सब कुछ कुर्बान कर रही थी, आज वही उसके वजूद पर सवाल उठा रहा था। एक गलतफहमी ने उनके रिश्ते में एक गहरी दरार डाल दी।
उस रात, सुमन बहुत रोई। पर अगली सुबह, वह फिर से उठी, उसने रवि के लिए चाय बनाई और अपनी फैक्ट्री के लिए निकल गई। उसने हार नहीं मानी।
कहानी में मोड़ तब आया, जब एक बड़े प्रकाशक ने रवि की एक कहानी को पसंद कर लिया। पर उन्होंने एक शर्त रखी - किताब को छपवाने के लिए पचास हजार रुपये की ज़रूरत थी।
यह सुनकर रवि की सारी उम्मीदें टूट गईं। "कहाँ से लाएँगे हम इतने पैसे?" वह निराश होकर बोला।
उस रात, जब रवि सो रहा था, सुमन ने एक बड़ा फैसला किया।
अगली सुबह, वह अपनी माँ के दिए हुए सोने के कंगन, जो उसकी आखिरी निशानी थे, लेकर सुनार की दुकान पर गई और उन्हें बेच दिया।
उसने पैसे लाकर रवि के हाथ में रख दिए।
"पर यह... यह कहाँ से आए, सुमन?" रवि ने कांपती आवाज़ में पूछा।
"मेरी कुछ बचत थी," सुमन ने झूठ बोला, ताकि उसके पति को आत्मग्लानि न हो।
वह किताब छपी, और वह रातों-रात एक बड़ी सफलता बन गई। रवि अब एक जाना-माना लेखक था। वे उस छोटी सी चॉल से निकलकर एक बड़े, शानदार फ्लैट में आ गए। अब उनके पास वह सब कुछ था, जिसका उन्होंने सपना देखा था।
एक दिन, रवि को एक बहुत बड़े साहित्यिक पुरस्कार के लिए चुना गया।
पुरस्कार समारोह में, जब रवि मंच पर खड़ा था, उसकी आँखों में जीत की चमक थी। उसने सबका धन्यवाद किया - अपने प्रकाशक का, अपने पाठकों का।
"और अंत में," उसने कहा, "मैं उस इंसान का धन्यवाद करना चाहता हूँ, जिसके बिना मैं कुछ भी नहीं हूँ। मेरी पत्नी, सुमन।"
उसने सुमन को मंच पर बुलाया। सुमन, जो आज भी वही साधारण सी साड़ी पहने दर्शकों के बीच बैठी थी, झिझकते हुए मंच पर आई।
रवि ने पुरस्कार सुमन के हाथों में थमा दिया।
"दोस्तों," उसने रुंधे हुए गले से कहा, "आप सब मेरी कहानियों की तारीफ करते हैं। पर मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी और संघर्ष भरी कहानी तो यह औरत है, जो मेरे बगल में खड़ी है। जब मैं सपने बुन रहा था, तो यह हकीकत की ज़मीन पर मेरे लिए रोटी कमा रही थी। जब मैं हार रहा था, तो यह अपनी उम्मीदों से मेरी हिम्मत बँधा रही थी। और जब मुझे पैसों की ज़रूरत थी, तो इसने अपनी सबसे कीमती चीज़..."
उसने सुमन के खाली हाथों को देखा। "इसने अपने कंगन बेच दिए, ताकि मेरी किताब छप सके। यह पुरस्कार मेरा नहीं, इसका है।"
पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। सुमन की आँखों से आँसू बह रहे थे, पर आज वे दुख के नहीं, बल्कि सम्मान और प्रेम के थे।
यह कहानी हमें सिखाती है कि एक पत्नी का संघर्ष अक्सर घर की चारदीवारी में गुम होकर रह जाता है। पर यही वह नींव है, जिस पर एक पुरुष अपनी सफलता का महल खड़ा करता है। हर सफल कहानी के पीछे, एक ऐसी ही गुमनाम नायिका की दास्तान छिपी होती है, जिसका सम्मान करना हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है।

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