मेरा पति
जब मेरी शादी समीर से तय हुई, तो मेरी सहेलियाँ अक्सर मज़ाक में कहती थीं, "प्रिया, तेरा पति तो बिल्कुल 'फ़िल्मी हीरो' जैसा नहीं है। ना ज़्यादा बातें करता है, ना ही कोई शेर-ओ-शायरी।" मैं भी मुस्कुरा देती थी। बचपन से मैंने भी कहानियों और फ़िल्मों में एक ऐसे जीवनसाथी की कल्पना की थी जो मेरे लिए चाँद-तारे तोड़ लाने की बातें करे, जो अचानक फूलों का गुलदस्ता लेकर आ जाए, या बारिश में मेरे साथ भीगने की ज़िद करे।
समीर वैसे बिल्कुल नहीं थे। वो शांत, समझदार और बेहद सुलझे हुए इंसान थे। हमारी शादी के शुरुआती दिनों में मुझे कभी-कभी लगता था कि हमारी ज़िंदगी में थोड़ी 'रोमांस' की कमी है। वो सुबह ऑफ़िस जाते, शाम को घर आते, हम साथ में खाना खाते, दिनभर की बातें करते और सो जाते। सब कुछ एक शांत नदी की तरह बह रहा था, जिसमें कोई ऊंची लहरें नहीं थीं।
मुझे वो दिन आज भी याद है, जब मैंने पहली बार अपने 'पति' को सच में पहचाना था। मुझे तेज़ बुख़ार था और मैं बिस्तर से उठ भी नहीं पा रही थी। उस रात समीर पूरी रात मेरे पास बैठे रहे। हर घंटे मेरा तापमान जाँचते, मेरे माथे पर ठंडी पट्टियाँ रखते और मुझे अपने हाथों से सूप पिलाते रहे। उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा, कोई बड़ा वादा नहीं किया, लेकिन उनकी आँखों में जो चिंता और प्यार था, वो हज़ारों शायरियों से बढ़कर था। उस रात मुझे एहसास हुआ कि प्यार का मतलब सिर्फ़ जताना नहीं, निभाना भी होता है।
धीरे-धीरे मैंने समीर के प्यार के अनकहे तरीकों को समझना शुरू कर दिया।
वो मेरे लिए कभी महंगे तोहफ़े नहीं लाते, लेकिन जब भी बाज़ार जाते हैं तो मेरी पसंदीदा चाट या आइसक्रीम लाना कभी नहीं भूलते। उन्हें पता है कि मुझे मीठा कितना पसंद है।
वो कभी मेरे लिए कविताएँ नहीं लिखते, लेकिन जब मैं किसी बात से परेशान होती हूँ, तो वो घंटों तक मेरी बातें सुनते हैं, बिना मुझे जज किए। वो मुझे सलाह नहीं देते, बस मेरा हाथ थामकर कहते हैं, "सब ठीक हो जाएगा, मैं हूँ ना।" उनका ये एक वाक्य मेरे सारे डर को भगा देता है।
एक बार मैंने यूँ ही उनसे कहा था कि मुझे पेंटिंग करने का बहुत मन है। बात आई-गई हो गई। लेकिन अगले हफ़्ते, उन्होंने मुझे एक पूरा पेंटिंग किट लाकर दिया और कहा, "अपने सपनों को सिर्फ़ सोचा मत करो, उन्हें रंग भी भरो।" उस दिन मुझे लगा कि मेरा पति मेरे सपनों को मुझसे ज़्यादा समझता है।
आज हमारी शादी को दस साल हो गए हैं और हमारा एक प्यारा सा बेटा है, आरव। मैं समीर को जब आरव के साथ खेलते देखती हूँ, उसे कहानियाँ सुनाते देखती हूँ, तो मेरा दिल गर्व और सुकून से भर जाता है। वो सिर्फ़ एक अच्छे पति नहीं, एक बेहतरीन पिता भी हैं।
मेरी सहेलियाँ आज भी सही कहती हैं। मेरे पति 'फ़िल्मी हीरो' जैसे नहीं हैं। वो आसमान से तारे तोड़कर नहीं ला सकते, लेकिन वो मेरे लिए एक ऐसा मज़बूत आसमान बन गए हैं, जिसके नीचे मैं सुरक्षित और आज़ाद महसूस करती हूँ। वो मेरे सपनों के राजकुमार नहीं हैं, बल्कि मेरी हकीकत का सबसे ख़ूबसूरत सच हैं।
प्यार शायद शोर-शराबे और बड़े-बड़े वादों का नाम नहीं है। प्यार तो वो खामोश एहसास है, जो कहता है - "तुम अकेली नहीं हो।" मेरे पति मेरी वही खामोश, मगर सबसे मज़बूत ताकत हैं।
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